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जैनागमन्यायसंग्रहः जाव सिखंधपएसो, एवं ते अणवस्था भविस्सइ, तं मा भणाहिभइयव्वो पएसो, भणाहि धम्मे पएसे से पएसे धम्मे, अहम्मे पएसे से पएसे अहम्मे, अागासे पएसे से पए से आगासे, जीवे पए से से पएसे नो जीवे, खंधे पएसे से पएसे नोखंधे, एवं वयंत सदनयं मभिमरूढोमणइ-जं भणसि-धम्मे पएसे से पएसे धम्मे जाव जीवे पएसे से पएसे नोजीवे खंधे पएसे से पए से नोखंधे, तं न भवइ, कम्हा ?, इत्थं खलु दो समासा भवंति, तंजहातप्पुरिसे अ कम्मधारए अ, तं ण णज्जइ कयरेणं समासेणं भणसि ?, किं तप्पुरिसेणं किं कम्मधारएणं ?, जइ तप्पुरिसेणं भणसि तो मा एवं भणाहि, अह कम्मधारएणं भणसि तो विसेस
ओ भणाहि, धम्मे असे पएसे अ से पएसे धम्मे अहम्मे असे पएसे असे पएसे अहम्मे, आनासे असे पए से असे पएसे आगासे जीवे असे पएसे असे पए से नोजीवे, खंधे असे पएसे असे पए से नोखंधे, एवं वयं समभिरूढं संपइ एवंभूत्रोभणइ-जं जं भणसि तं तं सव्वं कसिणं पडिपुण्णं निरवसेसं एगगहण गहियं देसेऽवि मे अवत्थू पएसेऽवि मे अवत्थू से तं पएसदिट्टतेणं । से तं नयप्पमाणे (स० १४५)
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