Book Title: Jainagam Nyayasangraha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalaya Ludhiyana

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Page 88
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८० जनागमन्यायसंग्रहः सं० - अहवा चरिमसमय० अचरिम समय० अहवा वायरसंपराय " सरागसंजमे दुविहे पं० तं० - पडिवाति चेव पडिवाति चेव, बीयरागसंजमे दुविहे पं० तं० उवसंतकसायवीयरागसंजमे चैव खीणकसायवीयरागसंजमे चेव उवसंतकसायवीयराग संजमे दुविहे पं० तं० - पढमसमयउवसंतकसायवीतरागसंजमे चेव, अपढमसमयउव०, अहवा चरिमसमय० चरिमसमय ०, खीकसायवीतरागसंजमे दुबिहे पं० तं० - छउमत्थखीणकसाय वीयरागसंजमे चैव केवलिखी कसायवोयरागसंजमे चेब, छउमत्थखीण कसायवीयरागसंजमे दुविहे पं० तं० सयंबुद्ध छउमत्थखी कसाय० बुद्धवोहियछ उमत्थ०, सयंबुद्धछ उमत्थ० दुविहे प० तं ० -- पढमसमय० अपढमसमय०, हवा चरिमसमय ० अचरिमसमय०, बुद्धवोहियछरमत्थखीण० दुविहे पं० तं०पढमसमय० अपढमसमय०, हवा चरिमसमय० चरिमसमय०, केवलिखीएकसायवीतरागसंजमे दुविहे पं० तं० - सजोगि केव लिखी एक साय० सजागिकेवलिखी एकसाय संजमे दुविहे पं० तं०- पढमसमय ० जोगिन लिखी एक सायवीयराग०, पदमसमय० अहवा चरिमसमय० श्रचरिमसमय ०, अजोगि " www.kobatirth.org केवलिखी एक साय० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir — संजमे दुविहे पं० तं० - पढमसमय ० For Private And Personal Use Only

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