Book Title: Jainagam Nyayasangraha
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Jain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
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दशनविषयः
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१०३
उग्गहे पं० १, गो० १, दुविहे उग्गहे पं० तं० - श्रत्थोग्गहे य वंजगोग्गहे य | जणोग्गहे गं भंते ! कतिविधे ० १ गो० !
"
चउव्विहे पं० तं० – सोतिंदियवंजगोग्गहे घाणिदियवंजगोग्गहे जिब्भिंदियवं जगोग्गहे फासिंदिय० । अत्थोग्गहे प भंते । कतिविधे पं० १, गो० ! छवि हे पं० तं० – सोतिंदिय प्रत्थोवग्गहे चक्खिदिया ० जिब्भिदिया० फासिदियश्र० नोइंदिय
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ro | नेरइयाणं भंते! कतिविहे उग्गहे पण्णत्ते १ गो० ! दुविहे पं० तं० प्रत्योरगहे य वंजयोग्गहे य, एवं असुरकुमाराणं जान थणियकुमाराणं । पुढविकाइयाण भंते ! कतिविधे उग्गहे, पं० १, गो० दुविधे उग्गहे पं० -- अत्थोग्गहे य वंजणावग्गहे य । पुढनिकाइयाणं भंते ! वंजणोग्गहे कतिविधे पं० १, गो० ! एगे फासिंदियवं जगोग्गहे पं० । पुढविकाइयाणं भंते ! कतिविधे
थोर गहे पणते ?, गो० एगे फासिंदिय अत्थोग्गहे पं० एवं जाव वणस्सइकाइयाणं, एवं वेइंदियाणवि, नवरं बेइंदियाणं वंजगो दुविहे पं०, त्याग दुविहे पं० एवं ते इंदिय चउरिंदिया णवि, वरं इंदियपरिवुड्ढी कायव्वा, चउर दियाणं वंजणोग्गहे तिविधे पं०, थोर चव्वधे पं०, सेसाणं जहा नेरहवाणं जाव वेमाणियाणं ६, १० ( सू० २०० )
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