________________
१०४ / जैमतत्वविद्या
देश-वस्तु के बुद्धि कल्पित एक हिस्से को देश कहा जाता है, जैसे- वस्त्र का कोई भाग ।
1
प्रदेश-वस्तु के संलग्न उसके अविभाज्य हिस्से को प्रदेश कहा जाता है। परमाणु - पुद्गल की अविभाज्य इकाई को परमाणु कहा जाता है । स्कंध, देश और प्रदेश धर्मास्तिकाय आदि के होते हैं। परमाणु केवल पुद्गल केही होता है ।
I
परमाणु द्रव्य रूप से अविभाज्य और निरवयव होता है । इसका कोई खण्ड नहीं होता। फिर भी वर्ण, गंध, रस और स्पर्श - पुद्गल के ये चारों लक्षण उसमें भी होते हैं । इनके आधार पर परमाणु का स्वरूप बदलता रहता है । परमाणु का वर्णांतर, गंधांतर, रसांतर और स्पर्शांतर होना सम्मत माना गया है। इस दृष्टि से इसे शाश्वत और अशाश्वत दोनों कहा जा सकता है । दो आदि परमाणुओं का एकीभाव होने से स्कन्ध हो जाता है । जैसे— द्विप्रदेशी स्कन्ध, त्रिप्रदेशी स्कन्ध, असंख्येयप्रदेशी स्कन्ध, अनन्तप्रदेशी स्कन्ध |
में
४. पुण्य के नौ प्रकार हैं
४. शयन
७. वचन
५. वस्त्र
८. काय
३. लयन
६. मन
९. नमस्कार
नौ तत्त्वों में जीव और अजीव के बाद तीसरा स्थान है पुण्य का। चौथे बोल 'के नौ प्रकार बतलाए गए हैं ।
पुण्य
१. अन्न
२. पान
'शुभं कर्म पुण्यम् ।' इस परिभाषा के अनुसार सात वेदनीय आदि शुभ कर्मों ayu a ता है । किन्तु कारण में कार्य का उपचार करने से जिन-जिन निमित्तों शुभ कर्म का बंध होता है, उन्हें भी पुण्य कह दिया जाता है । पुण्य के नौ प्रकार इसी विवक्षा के आधार पर बतलाए गए हैं।
से
अन्न पुण्य
संयमी पुरुष को दिए जाने वाले अन्न दान के निमित्त से होने वाला शुभकर्म
34
अन्न पुण्य है ।
पान पुण्य
संयमी पुरुष को दिये जाने वाले पानक—- जल आदि के निमित्त से होने वाला शुभ कर्म पान पुण्य है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org