Book Title: Jain Tattvavidya
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 205
________________ चतुर्थ वर्ग । २०३ छेद चार हैं१. निशीथ ३. बृहत्कल्प २. व्यवहार ४. दशाश्रुतस्कन्ध आवश्यक सूत्र छह विभाग वाला है१. सामायिक ४. प्रतिक्रमण २. चतुर्विशतिस्तव ५. कायोत्सर्ग ३. वन्दना ६. प्रत्याख्यान १७. प्रत्याख्यान के दस प्रकार हैं१. नवकारसी ६. निर्विगय २. प्रहर ७. आयंबिल ३. पुरिमार्द्ध ८. उपवास (चउत्थभत्त) ४. एकाशन ९. दिवस चरिम ५. एकस्थान १०. अभिग्रह १८. व्यवहार के पांच प्रकार हैं१. आगम ४. धारणा २. श्रुत ५. जीत ३. आज्ञा १९. नय के सात प्रकार हैं तीन द्रव्यार्थिक१. नैगम २. संग्रह ३. व्यवहार चार पर्यायार्थिक१. ऋजुसूत्र ३. समभिरूढ़ २. शब्द ४. एवंभूत २०. नय के दो प्रकार हैं१.निश्चयनय २. व्यवहारनय २१. निक्षेप के चार प्रकार हैं१. नाम ३. द्रव्य २. स्थापना ४. भाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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