Book Title: Jain Tattvavidya
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 203
________________ चतुर्थ वर्ग / २०१ पुद्गलास्तिकाय द्रव्य से अनन्त द्रव्य क्षेत्र से लोकपरिमाण काल से अनादि अनन्त भाव से मूर्त गण से ग्रहण गुण जीवास्तिकाय द्रव्य से अनन्त द्रव्य क्षेत्र से लोकपरिमाण काल से अनादि अनन्त भाव से अमूर्त गुण से उपयोग गुण ५. गुण के दो प्रकार हैं१. सामान्य गुण अस्तित्व, द्रव्यत्व आदि २. विशेष गुण चेतनत्व, मूर्तत्व आदि ६. पर्याय के दो प्रकार हैं१. स्वभाव पर्याय २. विभाव पर्याय अथवा १. अर्थ (अव्यक्त) पर्यायर. व्यंजन (व्यक्त) पर्याय ७. प्रमाण के दो प्रकार हैं१. प्रत्यक्ष २. परोक्ष ८. प्रत्यक्ष के दो प्रकार हैं १. पारमार्थिक प्रत्यक्ष २. सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष ९. पारमार्थिक प्रत्यक्ष के तीन प्रकार हैं २. मनःपर्यव ३. केवल १०. सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष (श्रुतनिश्रित मति) के चार प्रकार हैं१. अवग्रह ३. अवाय २. ईहा ४. धारणा ११. परोक्ष के दो प्रकार हैं१. मतिज्ञान २. श्रुतज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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