Book Title: Jain Tattvavidya
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 202
________________ २००/ जैनतत्वविद्या चतुर्थ वर्ग ४. भाव १. सत् के तीन लक्षण हैं १. उत्पाद २. व्यय ३. धौव्य २. वस्तु-बोध की चार दृष्टियां हैं१. द्रव्य ३. काल २. क्षेत्र ३. द्रव्य के छह प्रकार हैं १. धर्मास्तिकाय ४. पुद्गलास्तिकाय २. अधर्मास्तिकाय ५. जीवास्तिकाय ३. आकाशास्तिकाय ६. काल ४. छह द्रव्यों के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुणधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय- द्रव्य से एक द्रव्य (स्व नाम) क्षेत्र से लोकव्यापी काल से अनादि अनन्त भाव से अमूर्त गुण से गमन एवं स्थान गुण आकाशास्तिकाय द्रव्य से एक द्रव्य (स्व नाम) क्षेत्र से लोकालोकव्यापी काल से अनादि अनन्त भाव से अमूर्त गुण से अवगाहन गुण काल द्रव्य से अनन्त द्रव्य क्षेत्र से समयक्षेत्रवर्ती काल से अनादि अनन्त भाव से अमूर्त गुण से वर्तन गुण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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