Book Title: Jain Tattvavidya
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 200
________________ १९८ / जैनतस्वविद्या तीन गुप्ति६. मनोगुप्ति ७. वाक्गुप्ति ८. कायगुप्ति २०. स्वाध्याय के पांच प्रकार हैं१. वाचना ४. अनुप्रेक्षा २. प्रच्छना ५. धर्मकथा ३. परिवर्तना २१. ध्यान के चार प्रकार हैं१. आर्त ३. धर्म्य २. रौद्र ४. शुक्ल २२. धर्म की पहचान के पांच प्रकार हैं त्याग धर्म है, भोग धर्म नहीं है। आज्ञा धर्म है, अनाज्ञा धर्म नहीं है। संयम धर्म है, असंयम धर्म नहीं है। उपदेश धर्म है, बलप्रयोग धर्म नहीं है। अनमोल धर्म है, मूल्य से प्राप्त होने वाला धर्म नहीं है। २३. धर्म के दो प्रकार हैं १. लौकिक धर्म २. लोकोत्तर धर्म लौकिक धर्म के अनेक प्रकार हैं परम्परा, रीतिरिवाज आदि। लोकोत्तर धर्म के दो प्रकार हैं १. श्रुत धर्म २. चारित्र धर्म अथवा १. संवर धर्म २. निर्जरा धर्म २४. धर्म के दो प्रकार हैं १. अनगार धर्म २. अगार धर्म अनगार धर्म (मुनि धर्म) के पांच प्रकार हैं१. अहिंसा महाव्रत ४. ब्रह्मचर्य महाव्रत २. सत्य महाव्रत ५. अपरिग्रह महाव्रत ३. अचौर्य महाव्रत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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