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१६२ / जैनतत्त्वविद्या
अनागत, अतिक्रान्त, कोटिसहित, नियंत्रित, सागार, अनागार, परिमाणकृत, निरवशेष, संकेत और अद्धा-इन प्रत्याख्यानों को सर्वउत्तरगुण प्रत्याख्यान के रूप में व्याख्यात किया है। वर्तमान में प्रचलित दस प्रत्याख्यानों का रूप भगवती में निर्दिष्ट दस प्रत्याख्यानों से भिन्न है। इस बोल में इन्हीं प्रत्याख्यानों का ग्रहण किया गया है। ये प्रत्याख्यान एक प्रकार की तपस्या है। इस अनुष्ठान को पूरा करने में दस दिन का समय लगता है। नवकारसी
___ यह सबसे छोटी तपस्या है। इसका गुणात्मक नाम कुछ भी नहीं है। इसका स्वरूप है—सूर्योदय से लेकर ४८ मिनट तक कुछ भी खाना नहीं, पीना भी नहीं। समय संपन्न होने पर नमस्कार मंत्र का स्मरण कर इसको पूरा किया जाता है, इस दृष्टि से इसका नाम नमस्कार-संहिता रखा गया है।
प्रहर
दिन के एक चौथाई भाग को प्रहर कहा जाता है । उतने समय तक खाद्य-पेय पदार्थों का उपयोग नहीं किया जाता। पुरिमार्थ
दिन का आधा भाग अर्थात् प्रथम दो प्रहर के काल तक खान-पान का परित्याग करना, आधा दिन या पुरिमार्ध कहलाता है। एकाशन
दिन में एक स्थान पर बैठकर एक बार से अधिक भोजन नहीं करना। एकस्थान
दिन में एक समय, एक आसन में, एक बार से अधिक भोजन नहीं करना । इसमें शरीर का संकोच-विकोच करना भी वर्जित है। निर्विगय
दिन में एक समय, एक बार से अधिक भोजन नहीं करना। भोजन में दूध, दही आदि सभी विकृतियों (गरिष्ठ पदार्थो) का परिहार करना । छाछ, रोटी, चने जैसे पदार्थों के अतिरिक्त सरस पदार्थों का सेवन नहीं करना । आयंबिल
दिन में एक समय, एक बार, केवल एक धान्य के अतिरिक्त कुछ नहीं खाना। उसमें नमक, मसाले, घी आदि कुछ भी नहीं होना चाहिए।
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