Book Title: Jain Tattvavidya
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 191
________________ द्वितीय वर्ग / १८९ द्वितीय वर्ग १.अजीव के दो प्रकार हैं१. अरूपी २. रूपी अरूपी अजीव के चार प्रकार हैं१. धर्मास्तिकाय ३. आकाशास्तिकाय २. अधर्मास्तिकाय ४. काल रूपी अजीव का एक प्रकार है १. पुद्गलास्तिकाय २. पुद्गल के पांच संस्थान हैं १. वृत्त (मोदक का आकार) ४. चतुष्कोण २. परिमंडल (चूड़ी का आकार) ५. आयत ३. त्रिकोण ३. जीव के प्रयोग में आने वाले पुद्गलस्कन्धों की आठ वर्गणाएं हैं १. औदारिक वर्गणा ५. कार्मण वर्गणा २. वैक्रिय वर्गणा ६. मनोवर्गणा ३. आहारक वर्गणा ७. वचन वर्गणा ४. तैजस वर्गणा ८.श्वासोच्छ्वास वर्गणा ४. पुद्गल के चार लक्षण हैं१. स्पर्श ३. गन्ध २. रस ४. वर्ण ५. इन्द्रियों के तेईस विषय हैं श्रोत्र इन्द्रिय के तीन विषय हैं१. जीव शब्द २. अजीव शब्द ३. मिश्र शब्द चक्षु इन्द्रिय के पांच विषय हैं१. कृष्ण ३. रक्त ५. श्वेत २. नील ४. पीत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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