Book Title: Jain Tattvavidya
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 195
________________ द्वितीय वर्ग | १९३ १४. क्रिया के पांच प्रकार हैं १. कायिकी ४. पारितापनिकी २. आधिकरणिकी ५. प्राणातिपातक्रिया ३. प्रादोषिकी अथवा १. आरम्भिकी ४. अप्रत्याख्यान क्रिया २. पारिग्रहिकी ५. मिथ्यादर्शनप्रत्यया ३. मायाप्रत्यया १५. संज्ञा के दस प्रकार हैं१. आहार ६. मान २. भय ७. माया ३. मैथुन ८. लोभ ४. परिग्रह ९. लोक(विशिष्ट या अर्जित वृत्ति) ५. क्रोध १० औघ (सामान्य या नैसर्गिक वृत्ति) १६. आहार के तीन प्रकार हैं १. ओज २. रोम ३. कवल १७. जन्म के तीन प्रकार हैं१. गर्भ २. उपपात ३. संमूर्च्छन १८. मरण के तीन प्रकार हैं १. बाल मरण ३. बाल-पंडित मरण २. पंडित मरण १९. अन्तराल गति के दो प्रकार हैं १. ऋजु गति २. वक्र गति २०. छद्मस्थ के दो प्रकार हैं १. सकषायी - सराग-दसवें गुणस्थान तक २. अकषायी - वीतराग-ग्यारहवें, बारहवें गुणस्थान में २१. वीतराग के दो प्रकार हैं १. छझस्थ वीतराग २. केवली वीतराग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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