Book Title: Jain Tattvavidya
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 193
________________ वेदनीय कर्म की दो प्रकृतियां हैं१. सात वेदनीय मोहनीय कर्म की दो प्रकृतियां हैं१. दर्शन मोहनीय आयुष्य कर्म की चार प्रकृतियां हैं १. नरक आयुष्य २. तिर्यंच आयुष्य नाम कर्म की दो प्रकृतियां हैं १. शुभ नाम गोत्र कर्म की दो प्रकृतियां हैं १. उच्च गोत्र अन्तराय कर्म की पांच प्रकृतियां हैं १. दान अन्तराय २. लाभ अन्तराय ३. भोग अन्तराय ८. कर्म के आठ दृष्टान्त हैं १. ज्ञानावरणीय कर्म २. दर्शनावरणीय कर्म३. वेदनीय कर्म ४. मोहनीय कर्म ५. आयुष्य कर्म ६. नाम कर्म गोत्र कर्म ७. १. बन्ध २. सत्ता ३. उदय ― Jain Education International - २. असात वेदनीय ८. अन्तराय कर्म ९. कर्म की दस अवस्थाएं हैं २. चारित्र मोहनीय ३. मनुष्य आयुष्य ४. देव आयुष्य २. अशुभ नाम ४. उदीरणा ५. उद्वर्तन ६. अपवर्तन २. नीच गोत्र आंख की पट्टी के समान प्रहरी के समान ४. उपभोग अन्तराय ५. वीर्य अन्तराय मधु लिपटी तलवार की धार के समान मद्यपान के समान बेड़ी के सामन चित्रकार के समान के समान कुम्भकार कोषाध्यक्ष के समान द्वितीय वर्ग / १९९ ७. संक्रमण ८. उपशम ९. निधत्ति For Private & Personal Use Only १०. निकाचना www.jainelibrary.org

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