Book Title: Jain Tattvavidya
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 186
________________ १८४ / जैनतत्त्वविद्या ८. दण्डक के चौबीस प्रकार हैं १. सात नारकी का दण्डक २-११. भवनपति देवों के दण्डक दस-असुरकुमार, नागकुमार आदि १२. पृथ्वीकाय का दण्डक २०. तिर्यंच पंचेन्द्रिय का दण्डक १३. अप्काय का दण्डक १४. तेजस्काय का दण्डक २१. मनुष्य पंचेन्द्रिय का दण्डक १५. वायुकाय का दण्डक १६. वनस्पतिकाय का दण्डक २२. व्यन्तर देवों का दण्डक १७. द्वीन्द्रिय का दण्डक २३. ज्योतिष्क देवों का दण्डक १८. त्रीन्द्रिय का दण्डक १९. चतुरिन्द्रिय का दण्डक २४. वैमानिक देवों का दण्डक ९. शरीर के पांच प्रकार हैं १. औदारिक ४. तैजस २. वैक्रिय ५. कार्मण ३. आहारक १०. इन्द्रिय के पांच प्रकार हैं १. श्रोत्रेन्द्रिय ४. रसनेन्द्रिय २. चक्षुरिन्द्रिय ५. स्पर्शनेन्द्रिय ३. घाणेन्द्रिय प्रत्येक इन्द्रिय के दो-दो प्रकार हैं १. द्रव्येन्द्रिय २. भावेन्द्रिय द्रव्येन्द्रिय के दो-दो प्रकार हैं१. निर्वृत्ति २. उपकरण भावेन्द्रिय के दो प्रकार हैं१. लब्धि २. उपयोग ११. पर्याप्ति के छह प्रकार हैं१. आहार ४. श्वासोच्छ्वास २. शरीर ५. भाषा ३. इन्द्रिय ६. मन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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