Book Title: Jain Tattvavidya
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 188
________________ ६. दर्शन १८६ / जैनतत्त्वविद्या अनाकार उपयोग के चार प्रकार हैं१. चक्षु दर्शन ३. अवधि दर्शन २. अचक्षु दर्शन ४. केवल दर्शन १५. आत्मा के आठ प्रकार हैं१. द्रव्य ५. ज्ञान २. कषाय ३. योग ७. चारित्र ४. उपयोग ८. वीर्य १६. गुणस्थान के चौदह प्रकार हैं१. मिथ्यादृष्टि ८. निवृत्तिबादर २. सास्वादन ९. अनिवृत्तिबादर ३. मिश्रदृष्टि १०. सूक्ष्मसम्पराय ४. अविरति ११. उपशान्तमोह ५. देशविरति १२. क्षीणमोह ६. प्रमत्तसंयत १३. सयोगीकेवली ७. अप्रमत्तसंयत १४. अयोगीकेवली १७. भाव के पांच प्रकार हैं१. औदयिक ४. क्षायोपशमिक २. औपशमिक ५. पारिणामिक ३. क्षायिक १८. लेश्या के छह प्रकार हैं१. कृष्ण ४. तेजः २. नील ५. पद्म ३. कापोत ६. शुक्ल १९. मिथ्यात्व के पांच प्रकार हैं१. आभिग्रहिक ४. अनाभोगिक २. अनाभिग्रहिक ५. सांशयिक ३. आभिनिवेशिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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