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वर्ग ४, बोल २१ / १७१ वस्तु का इच्छानुसार नामकरण करना नाम निक्षेप है । इसमें जाति, द्रव्य, गुण, क्रिया, लक्षण आदि निमित्तों की अपेक्षा नहीं की जाती, जैसे—किसी निरक्षर व्यक्ति का 'उपाध्याय' नाम रखना।
स्थापना निक्षेप-मूल अर्थ से शून्य वस्तु को उसी के अभिप्राय से स्थापित करना स्थापना निक्षेप है, जैसे किसी प्रतिमा में उपाध्याय की स्थापना करना।
___ द्रव्य निक्षेप-भूत और भावी अवस्था के कारण व्यक्ति या वस्तु की उस अभिप्राय से पहचान करना द्रव्य निक्षेप है। जैसे—जो व्यक्ति पहले उपाध्याय रह चुका अथवा भविष्य में उपाध्याय बनने वाला है, उस व्यक्ति को उपाध्याय कहना ।
उपयोगशून्यता की अवस्था में भी द्रव्य निक्षेप का प्रयोग होता है, जैसेअध्यापन कार्य में प्रवृत्त होने पर भी अध्यवसाय-शून्यता की स्थिति में अध्यापक 'द्रव्य अध्यापक' है।
भाव निक्षेप-जिस व्यक्ति या वस्तु का जो स्वरूप है, वर्तमान में वह उसी स्वरूप को प्राप्त है अर्थात् उसी पर्याय में परिणत है, वह भाव निक्षेप है। इसमें किसी प्रकार का उपचार नहीं होता । इसलिए वह वास्तविक निक्षेप है; जैसे-अध्यापन की क्रिया में प्रवृत्त व्यक्ति को अध्यापक कहना।
अध्यापक की भांति ही अर्हत् शब्द के भी निक्षेप किए जा सकते हैंनाम अर्हत्- अर्हत्कुमार नाम का व्यक्ति । स्थापना अर्हत्- अर्हत् की प्रतिमा । द्रव्य अर्हत्- जो अतीत में तीर्थंकर हो चुके तथा भविष्य में तीर्थंकर
होने वाले हैं। भाव अर्हत्- केवलज्ञान उपलब्ध कर चतुर्विध धर्मसंघ की स्थापना करने
वाले तीर्थंकर। इस प्रकार निक्षेप का प्रयोजन है-भाव और भाषा में परस्पर संगति बिठाना। ऐसा हुए बिना न तो अर्थ का बोध हो सकता है और न ही अप्रासंगिक अर्थों का परिहार किया जा सकता है । संक्षेप में यह माना जा सकता है कि किसी भी अर्थ के सूचक शब्द के पीछे इसके अर्थ की स्थिति को स्पष्ट करने वाले विशेषण का प्रयोग निक्षेप है । उसके द्वारा व्यक्ति या वस्तु के बारे में दिमाग में एक स्पष्ट रेखाचित्र बन जाता है और उसे उस व्यक्ति या वस्तु की पहचान करने या कराने में सुविधा हो जाती है।
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