Book Title: Jain Tattvavidya
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 171
________________ वर्ग ४, बोल २० / १६९ वस्तु का अस्खलित रूप से प्रचलन हो, उसे दार्शनिक भूमिका पर भी नकारा नहीं जा सकता। इस दृष्टि से तत्त्व के प्रतिपादन में व्यवहार नय की भी अपनी मूल्यवत्ता निश्चय नय और व्यवहार नय की प्रतिपादन-शैली को यहां कुछ उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट किया जा रहा है___ भौरे में कौन-सा वर्ण (रंग) है? यह एक प्रश्न है । इस प्रश्न का आबालगोपाल प्रसिद्ध समाधान यह है कि वह काला होता है। जहां कहीं कालेपन को समझाया जाता है, वहां भौरे को ही प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया जाता है । यह व्यवहार दृष्टि परमार्थ दृष्टि के अनुसार भौंरा काला नहीं, पांच वर्ण वाला होता है। क्योंकि कोई भी बादर (स्थूल) पुद्गल-स्कन्ध पंच वर्णात्मक ही होता है। यह तथ्य असत् मालूम पड़ता है, पर है सत्य । इस सत्य का ग्रहण निश्चय नय की दृष्टि से ही किया जा सकता है। आकाश नीला है, यह एक दृष्टिकोण है। क्योंकि वह ऐसा ही दिखाई देता है। किन्तु सच्चाई यह है कि आकाश में कोई रंग होता ही नहीं, वह अरूप होता है। इस उदाहरण में भी पहला दृष्टिकोण व्यवहार नय का है और दूसरा निश्चय नय का। ___एक सैनिक युद्ध में जाता है, हाथ में शस्त्र उठाता है और शत्रु-सेना को परास्त कर देता है । व्यवहार दृष्टि के अनुसार यह धर्म है । क्योंकि राष्ट्रधर्म भी लोकमान्यता में केवल धर्म के नाम से चलता है। किन्तु निश्चय नय इसे धर्म नहीं कहेगा । उसके अनुसार धर्म वहीं होगा, जहां अहिंसा है। किसी भी दृष्टि से की गई हिंसा, हिंसा ही है। वह व्यवहार्य तो हो सकती है, किन्तु उसे धर्म का जामा नहीं पहनाया जा सकता। इस प्रकार सैकड़ों उदाहरण हैं जो निश्चय नय और व्यवहार नय की भेदरेखा को स्पष्ट करते हैं। इन दोनों ही नयों का हमारे जीवन में उपयोग है, इसलिए अपने-अपने स्थान पर दोनों का मूल्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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