________________
१३६ / जैनतत्वविद्या संयम
इन्द्रिय और मन का संयम । संयम की साधना से मानसिक और भौतिक दोनों प्रकार की समस्याओं का समाधान होता है । तप
कर्म शरीर को तपाने वाला अनुष्ठान । शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास के भेद से तप कई प्रकार का हो जाता है। त्याग
संकल्प-शक्ति का विकास । अनुराग के केन्द्र का बदलाव । विषय और उससे होने वाली वासना, आसक्ति को छोड़ने का संकल्प। ब्रह्मचर्य
इन्द्रिय-संयम, वासना-संयम अथवा आत्म-रमण ।
इन दस धर्मों की साधना करने वाला श्रमण ऊर्ध्वारोहण करता हुआ आत्मविकास की सब भूमिकाओं को पार कर मुक्त हो जाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org