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वर्ग ४, बोल ६ / १४७ १०. दर्शन
१३. चेतनत्व १६. अमूर्त्तत्व ११. सुख १४. अचेतनत्व
१२. वीर्य १५. मूर्तत्व गतिहेतुत्व और स्थितिहेतुत्व, धर्मास्तिकाय एवं अधर्मास्तिकाय का गुण है। अवगाहनहेतुत्व आकाश का गुण है । वर्तना काल का गुण है । स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण पुद्गल के गुण हैं । ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य जीव के गुम हैं । चेतनत्व जीव का गुण है । अचेतनत्व जीव को छोड़ कर चार अस्तिकाय और काल का गुण है। मूर्तत्व पुद्गल का गुण है । अमूर्तत्व पुद्गल को छोड़ कर चार अस्तिकाय और काल का गुण है।
उपर्युक्त सोलह गुणों में जीव और पुद्गल में छह-छह गुण पाए जाते हैं। शेष सब द्रव्यों में तीन-तीन गुण होते हैं।
६. पर्याय के दो प्रकार हैं१. स्वभाव पर्याय २. विभाव पर्याय
अथवा १. अर्थ(अव्यक्त) पर्याय २. व्यंजन व्यक्त) पर्याय द्रव्य की परिवर्तनशील अवस्थाओं का नाम पर्याय है अथवा पूर्व आकार के परित्याग और उत्तर आकार की उपलब्धि को पर्याय कहा जाता है । द्रव्य शब्द का प्रयोग अन्य दर्शनों में मिलता है, पर पर्याय की वहां कोई चर्चा नहीं है । वैसे पर्याय शब्द है बहुत महत्त्वपूर्ण । क्योंकि द्रव्य का दर्शन पर्याय रूप में ही होता है। पर्यायों से अतिरिक्त द्रव्य है भी क्या? कोई भी द्रव्य हो, उसका जो दृश्य रूप है, वह पर्याय ही है।
पर्याय के दो प्रकार हैं-स्वभाव पर्याय और विभाव पर्याय । बाह्य निमित्तों के बिना द्रव्य में परिवर्तन होता रहता है, वह स्वभाव पर्याय है। बाह्य निमित्तों के द्वारा द्रव्य में जो बदलाव आता है, वह उसका विभाव पर्याय है।
पानी में स्वाभाविक रूप से लहरें उठती हैं, यह स्वभाव पर्याय है। उसमें पत्थर आदि डालने से लहरें उठती हैं, वह विभाव पर्याय है।
__प्रकारान्तर से पर्याय के दो अन्य भेद माने गए हैं—अर्थ पर्याय और व्यंजन पर्याय । जो पर्याय सूक्ष्म होता है, इन चर्मचक्षुओं द्वारा देखा नहीं जाता, जिसके बदल
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