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वर्ग ४, बोल ३ / १४१ भारत की है। काल की अपेक्षा वह किस सन्, संवत् अथवा समय की बनी हुई है। भाव की अपेक्षा वह हाथघड़ी है, टेबलघड़ी है या दीवारघड़ी है । आकार में बड़ी है या छोटी है। किस धातु और रंग की है इत्यादि।
घड़ा और घड़ी दोनों निर्जीव पदार्थ हैं । इनका ज्ञान करने में जिन दृष्टियों को काम में लिया गया, सजीव पदार्थ का बोध करने के लिए भी उन्हीं चारों दृष्टियों का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए एक गाय को माध्यम बनाया जा सकता
द्रव्य गाय नाम वाला एक चौपाया पशु। क्षेत्र अमेरिका से भारत में आयात की गई। काल शीतकाल में जन्मी हुई, सद्यःप्रसूता या चिर-प्रसूता । भाव दुधारू, लड़ाकू, काले रंग वाली, अधिक दूध देने वाली, मीठा
दूध देने वाली इत्यादि। इस विश्लेषण से विश्लेषित गाय अन्य सभी प्रकार की गायों में अपनी अलग पहचान बनाकर जिज्ञासु लोगों को सर्वांगीण अवबोध करा सकती है ।इस प्रकार संसार की हर वस्तु की जानकारी में ये दृष्टियां कार्यकारी सिद्ध होती हैं।
३. द्रव्य के छह प्रकार हैं१. धर्मास्तिकाय ४ पुद्गलास्तिकाय २. अधर्मास्तिकाय ५. जीवास्तिकाय
३. आकाशास्तिकाय ६. काल इस वर्ग के प्रथम बोल में सत्-पदार्थ का विवेचन किया गया है। तीसरे बोल में द्रव्य के प्रकार बतलाए गए हैं। एक दृष्टि से पदार्थ और द्रव्य एक ही अर्थ के बोधक शब्द हैं, पर्यायवाची शब्द जैसे हैं । तत्त्वार्थ सूत्र में बतलाया गया है-'सत् द्रव्यम्' जो सत् है, सत्तावान् है, पदार्थ है, वह द्रव्य है । यहां प्रश्न हो सकता है कि यदि पदार्थ और द्रव्य एक ही होते तो उनके विवेचन में अन्तर क्यों रहता?
___ प्रश्न उचित है । इस संदर्भ में इतना ही बताना पर्याप्त होगा कि जहां ये दोनों शब्द समानार्थक माने गए हैं, वहां मात्र जीवत्व और अजीवत्व की विवक्षा है । द्रव्य के जितने प्रकार हैं, वे पदार्थ के नौ भेदों में और नौ पदार्थ, द्रव्य के दो भेदों में
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