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वर्ग ३, बोल २४ / १३३
अहिंसा अणुव्रत
चलते-फिरते निरपराध प्राणियों को जानबूझकर मारने का त्याग करना अहिंसा अणुव्रत है। सत्य अणुव्रत
किसी निर्दोष प्राणी की हत्या हो जाए, वैसे असत्य का त्याग करना सत्य अणुव्रत है। अस्तेय अणुव्रत
डाका डालकर, ताला तोड़कर बड़ी चोरी करने का त्याग करना अस्तेय अणुव्रत
आ
ब्रह्मचर्य अणुव्रत
वेश्यागमन, पर-स्त्रीगमन (पर-पुरुषगमन) का त्याग करना एवं अपनी स्त्री (पुरुष) के साथ संभोग की सीमा करना ब्रह्मचर्य अणुव्रत है। अपरिग्रह अणुव्रत
. सोना, चांदी, मकान, धन, धान्य आदि परिग्रह के संचय की मर्यादा करना अपरिग्रह अणुव्रत है। शिक्षाव्रत
उपर्युक्त पांच व्रतों की पुष्टि के लिए सात शिक्षाव्रत का पालन किया जाता है। इन सात शिक्षाव्रतों में प्रथम तीन व्रत-दिग्परिमाण, भोगोपभोगपरिमाण और अनर्थदंडविरमण—ये स्वीकृत व्रतों में गुण का आधान करने के कारण गुणव्रत कहलाते हैं।
दिग्परिमाण यातायात से संबंधित व्रत है। श्रावक धर्म का पालन करने वाला छहों दिशाओं में निरंकुश यातायात नहीं करता। जहां यातायात ही नहीं होता, वहां हिंसा, असत्य आदि सपाप प्रवृत्तियों से भी सहजता से बचा जा सकता है । दिशाओं में गमनागमन की सीमा न हो तो वहां होने वाले असंयम का भी निरोध नहीं होता। इसके साथ-साथ दिग्व्रत स्वीकार करने वाला श्रावक यातायात सम्बन्धी अव्यवस्थाओं और दुर्घटनाओं से भी बच सकता है ।
दूसरा गुणव्रत है भोगोपभोग-परिमाण । मनुष्य की आकांक्षा असीम होती है और आवश्यकता सीमित । इस गुणव्रत का पालन करने वाला श्रावक आकांक्षाओं
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