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वर्ग ३, बोल १३,१४ / ११७ क्षायिक
मोहकर्म की उपर्युक्त सातों प्रकृतियों का सर्वथा क्षय होने से प्राप्त होने वाला सम्यक्त्व क्षायिक सम्यक्त्व है। यह सम्यक्त्व प्राप्त होने के बाद सदा बना रहता
क्षायोपशमिक
उपर्युक्त सात प्रकृतियां जब स्थूल रूप में विपाकावस्था में नहीं रहतीं, अपने फल का स्पष्ट अनुभव नहीं करवातीं, उस समय उपलब्ध होने वाला सम्यक्त्व क्षायोपशमिक सम्यक्त्व कहलाता है। सास्वादन
औपशमिक सम्यक्त्व की स्थिति पूरी होने पर जीव उस सम्यक्त्व को छोड़ने लगता है । जिन क्षणों में सम्यक्त्व पूरा नहीं छूटता है-मिथ्यात्व दशा उपलब्ध नहीं होती है, उन क्षणों में होने वाला सम्यक्त्व सास्वादन सम्यक्त्व कहलाता है।
वेदक
क्षयोपशम सम्यक्त्व से क्षायिक सम्यक्त्व को उपलब्ध करने वाला जीव अनन्तानुबन्धी चतुष्क, मिथ्यात्व मोहनीय, मिश्र मोहनीय तथा सम्यक्त्व मोहनीय के अधिकांश दलिकों का क्षय कर देता है। शेष रहे पुद्गलांशों का क्षय करता हुआ जीव अन्तिम एक समय में सम्यक्त्व मोहनीय का जो वेदन करता है, वह वेदक सम्यक्त्व कहलाता है।
१३. सम्यक्त्व के दो हेतु हैं१. निसर्ग (सहज) २. अधिगम (उपदेश आदि से प्राप्त)
१४. सम्यक्त्व के पांच लक्षण हैं१. शम
४. अनुकम्पा २. संवेग
५. आस्तिक्य ३. निर्वेद तेरहवें बोल में सम्यक्त्व को उपलब्ध करने के दो हेतु बतलाए गए हैं
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