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उत्तर - एक अनेक, नित्य- अनित्य, अभेद-भेद, सत असत, तत्अतत् आदि अनेक युगल समझ लेना ।
प्रश्न १३ - सत्-असत् आदि युगल किस-किस में लग सकते हैं ? उत्तर --- प्रत्येक द्रव्य मे, प्रत्येक गुण मे, प्रत्येक पर्याय में, प्रत्येक अविभाग प्रतिच्छेद मे लग सकते है ।
प्रश्न १४ - एक अनेक, नित्य-अनित्य, सत्-असत् आदि क्या हैं ? उत्तर- धर्म है, गुण नही है ।
प्रश्न १५ - धर्म और गुण मे क्या अन्तर है ?
उत्तर - गुणो को धर्म कह सकते है, परन्तु धर्मो को गुण नही कह सकते हैं। क्योकि - (१) अस्तित्व, वस्तुत्व आदि सामान्य और विशेष गुण होते हैं उनकी पर्यायें होती है । ( २ ) नित्य- अनित्य, तत्अतत् आदि धर्म है उनकी पर्याये नही होती है यह अपेक्षित धर्म है । प्रश्न १६ - प्रत्येक द्रव्य मे सत्-असत्, नित्य - अनित्य, एक-अनेक आदि अनेक अपेक्षित धर्म हैं, वह किस प्रकार है ?
उत्तर - जैसे- एक आदमी को कोई पिताजी, कोई वेटा जी, कोई मामा जी, कोई चाचा जी कोई ताऊ जी कहता है, तो क्या वह झगडा करेगा ? नही करेगा, क्योकि वह समझता है इस अपेक्षा मामा
इस अपेक्षा पिता जी हूँ, उसी प्रकार प्रत्येक द्रव्य मे नित्य - अनित्य, एक अनेक आदि अनेक अपेक्षित धर्म हैं । उनमे अपेक्षा समझने से कभी भी झगडा नही होगा और अनेकान्त - स्याद्वाद धर्म की सिद्धि हो जावेगी ।
प्रश्न १७ - अनेकान्त स्याद्वाद किसमे लग सकता है और किसमे नहीं लग सकता है।
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उत्तर - जिसमे जो धर्म हो उसी मे लग सकता है। जिसमे जो धर्म नहीं हो उसमे नही लग सकता है । जैसे - परमाणु निश्चय से अप्रदेशी (एक प्रदेशी) है, व्यवहार से बहुप्रदेशी है, उसी प्रकार काल