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( ५३ ) प्रश्न १५६-सामान्य और विशेष को जानने से दुख कसे मिटे और सुख कैसे प्रगटे ?
उत्तर-(१) वस्तु मे नित्य धर्म है जिसके कारण वस्तु अवस्थित है। इस धर्म को जानने से पता चलता है कि द्रव्य रूप से मोक्ष आत्मा मे वर्तमान मे विद्यमान ही है, तो फिर उसका आश्रय करके कैसे प्रगट नही किया जा सकता ? अर्थात किया जा सकता है। (२) अनित्य धर्म से पता चलता है कि पर्याय मे मिथ्यात्व है, राग है, द्वष है, दुख है। साथ ही यह पता चल जाता है कि परिणमन स्वभाव द्वारा वदल कर सम्यक्त्व, वीतरागता और सुखरूप परिवर्तित किया जा सकता है। (३) भव्य जीव नित्य स्वभाव का आश्रय करके पर्याय के दुख को सुख मे बदल देता है । इसलिए सामान्य और विशेप को जानने से दुख का अभाव और सुख की प्राप्ति होती है।
प्रश्न १५७-कोई वस्तु को सर्वथा नित्य ही मान ले तो क्या नुकसान होगा?
उत्तर-निश्चयभापी वन जावेगा।
प्रश्न १५८-कोई वस्तु को सर्वथा अनित्य हो मान ले तो क्या नुकसान होगा?
उत्तर-मूलतत्व ही जाता रहेगा और बौद्धमत का प्रसग बनेगा।
प्रश्न १५६-नित्य-अनित्य को जानकर पात्र जीव को क्या करना चाहिए?
उत्तर-सामान्य-विशेष दोनो को जान कर पर्याय को गौण करके द्रव्यस्वभाव का आश्रय लेकर धर्म प्रगट करना पात्र जीव का परम कर्तव्य है।
प्रश्न १६०-क्या प्रमाण सप्तभगो को जानने से कल्याण नहीं होता है ?
उत्तर-अवश्य होता है।