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उत्तर - सम्यग्दर्शन पूर्वक ही पूर्ण निराकुलता प्रगट होती है और वही सच्चा सुख है ऐसा न मानकर वाह्य सुविधाओ मे सुख मानना यह मोक्ष तत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल है ।
प्रश्न ४५ -- मोक्ष मार्ग प्राप्त करने के लिए किस पर अधिकार मानना चाहिए ?
उत्तर – एक मात्र 'जो सकल निरावरण - अखण्ड - एक स्वरूप प्रत्यक्ष प्रतिभासमय - अविनश्वर - शुद्ध पारिणामिक परमभाव लक्षण निज परमात्म द्रव्य स्वरूप जो अपना आत्मा है । उस पर अधिकार करने से ही सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होकर क्रम मे वृद्धि करके परिपूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
प्रश्न ४६ - अनादिकाल से अज्ञानी जोव ने किस-किस पर अपना अधिकार माना, जिससे उसे संवर-निर्जरा मोक्ष की प्राप्ति नहीं हुई ?
उत्तर- (१) अत्यन्त भिन्न पर पदार्थों पर अपना अधिकार माना (२) आँख, नाक, कानरूप औदारिकशरीर पर अपना अधिकार माना ( 3 ) तंजस - कार्माण शरीरो पर अपना अधिकार माना । ( ४ ) भाषा और मन पर अपना अधिकार माना । ( ५ ) शुभाशुभ विकारी भावो मे अपना अधिकार माना । ( ६ ) अपूर्ण-पूर्ण शुद्ध पर्यायो के पक्ष पर अपना अधिकार माना । ( ७ ) भेदनय के पक्ष पर अपना अधिकार माना (८) अभेदनय के पक्ष पर अपना अधिकार माना। ( ९ ) भेदाभेदनय के पक्ष पर अपना अधिकार माना । इसलिए सवर निर्जरा और मोक्ष की प्राप्ति नही हुई ।
प्रश्न ४७ – नौ प्रकार के पक्षों पर अधिकार मानने से क्या होता
है?
उत्तर - अनादिकाल से एक-एक समय करके चारो गतियो मे घूमता हुआ निगोद की सैर करता है और प्रत्येक समय महा दुखी होता है ।
प्रश्न ४८ - आत्मा का अधिकार किसमे है और किमने नहीं है।