Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 281
________________ ( 271 ) की अस्ति या नास्ति से दूसरे पदार्थ की अस्ति या नास्ति का ज्ञान कर लिया जाता है। नोट-न्यायशास्त्र मे अनुमान प्रयोग मे साधन के सद्भाव मे साध्य के सद्भाव और साध्य के अभाव मे साधन के अभाव को अविनाभाव या व्याप्ति कहते हैं। वहाँ समव्याप्ति या विपमव्याप्ति नही होती। व्याप्ति होती है या अन्याप्ति होती है। यह विपय उससे भिन्न जाति का है। यह आध्यात्मिक विषय है। वहाँ धूम और अग्नि की व्याप्ति है। यहाँ धूम और अग्नि को विपम व्याप्ति है। इसलिए इस विपय को उस न्याय के ढग से समझने का प्रयत्न न करे किन्तु जिस ढग से यहाँ निरूपण किया गया है-उसी ढग से समझे तो कल्याण होगा। वहाँ उद्देश्य साधन द्वारा साध्य के सिद्ध करने का है और यहाँ उद्देश्य एक पदार्थ के अस्तित्व या नास्तित्व दूसरे पदार्थ के अस्तित्व या नास्तित्व को सिद्ध करने का है / (4) फुटकर (Mislanious) प्रश्न २७६-उपयोगसक्रान्ति के पर्यायवाची शब्द बताओ? उत्तर-उपयोगसक्रान्ति, पुनर्वृत्ति, क्रमवर्तित्व, विकल्प, ज्ञप्तिपरिवर्तन / उपयोग का बदलना। प्रश्न २७७-क्षायोपशमिक ज्ञान और क्षायिक ज्ञान में क्या अन्तर है? उत्तर-क्षायोपशमिक ज्ञान मे उपयोग सक्रान्ति होतो ही है। वह क्रमवर्ती ही है। क्षायिक ज्ञान मे उपयोग सक्रान्ति नही ही होती है। वह अक्रमवर्ती ही है। प्रश्न २७८-गुण क्या-क्या हैं ? उत्तर-सम्यक्त्व की उत्पत्ति होना, वृद्धि होना, निर्जरा होना, सवर होना, सवर निर्जरा की वृद्धि होना, पुण्य वन्धना, पुण्य का

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