Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 264
________________ ( 254 ) अधर्मद्रव्य, पुद्गल परमाणु आदि सूक्ष्म पदार्थ समुद्र, मरु पर्वत आदि, दूरवर्ती पदार्थ तथा तीर्थकर, चक्रवर्ती, राम, रावणादि अन्तरित पदार्थ हैं इनका वर्णन जैसा सर्वज्ञवीतराग भाषित आगम मे कहा गया है सो सत्य है या नही ? अथवा सर्वज्ञ देव ने वस्तु का स्वरूप अनेकान्तात्मक (अनन्तधर्म सहित) कहा है सो सत्य है कि असत्य है ? ऐसी शका उत्पन्न न होना सो निश्शकितपना है। परपदार्थो मे आत्मबुद्धि का उत्पन्न होना पर्यायबुद्धि है अर्थात कोंदय से मिली हुई शरीरादि सामग्री को ही जीव अपना स्वरूप समझ लेता है। इस अन्यथा बुद्धि से ही सात प्रकार के भय उत्पन्न होते है यथा-इहलोकभय, परलोकभय, वेदनाभय, अरक्षाभय, अगुप्तिभय, भरणभय, अकस्मात्भय / यहाँ पर कोई शका करे कि भय तो श्रावको तथा मुनियो के भी होता है क्योकि भय प्रकृति का उदय अष्टम गुणस्थान तक है तो भय का अभाव सम्यग्दृष्टि के कैसे हो सकता है ? उसका समाधान-सम्यग्दृष्टि के कर्म के उदय का स्वामीपना नहीं है और न वह पर द्रव्य द्वारा अपने द्रव्यत्वभाव का नाश मानता है, पर्याय का स्वभाव विनाशीक जानता है। इसलिए चारित्रमोह सबधी भय होते हुए भी दर्शनमोह सम्बन्धी भय का तथा तत्त्वार्थ श्रद्धान मे शका का अभाव होने से वह नि शक और निर्भय ही है। यद्यपि वर्तमान पीडा सहने मे अशक्त होने के कारण भय से भागना आदि इलाज भी करता है तथापि तत्त्वार्थ श्रद्धान से चिगने रूप दर्शनमोह सम्बन्धी भय का लेश भी उसे उत्पन्न नहीं होता। अपने आत्मज्ञान मे निश्शक रहता है। प्रश्न २३६-निःकांक्षित अंग किसे कहते हैं ? उत्तर-विषय-भोगों की अभिलाषा का नाम कांक्षा या वाछा है।' इसके चिन्ह ये हैं-पहिले भोगे हुवे भोगो की वाछा, उन भोगो की मुख्य क्रिया की वाछा, कर्म और कर्म के फल की वाछा, मिथ्यादृष्टियो को भोगो की प्राप्ति देखकर उनको अपने मन मे भले जानना

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