________________ / 265 ) - प्रश्न 253- यहां सराग सम्यग्दृष्टि से क्या अभिप्राय है ? उत्तर-जिस सम्बग्दर्शन के साथ बुद्धिपूर्वक चारित्र का राग वर्तता है। उसके धारी चौथे पांचवे छठे गुणस्थानवति जीवो को यहाँ सविकल्प या सराग सम्यग्दृष्टि कहा है। प्रश्न २५४--यहां वीतराग सम्यग्दष्टि से क्या अभिप्राय है ? उत्तर-जिस सम्यग्दर्शन के साथ बुद्धिपूर्वक चारित्र का राग नही वर्तता है। उसके धारी सातवें आदि गुणस्थानवति जीवो को यहाँ निर्विकल्प या वीतराग सम्यग्दृष्टि कहा गया है। (2) ज्ञानचेतना अधिकार प्रश्न २५५-ज्ञानचेतना किसे कहते हैं ? उत्तर-सम्यक्त्व से अविनाभूत मतिश्रुतज्ञानावरण के विशिष्ट क्षयोपशम से होने वाला ज्ञान का उघाड और उस उघाड के राग रहित शुद्धपरिणमन को ज्ञानचेतना कहते है अथवा ज्ञान के ज्ञानरूप रहने को [रागरूप न होने को ज्ञानचेतना कहते है अथवा ज्ञान के ज्ञानरूप वेदन को ज्ञानचेतना कहते हैं। प्रश्न २५६-ज्ञानचेतना के कितने भेद हैं ? उत्तर-दो-(१) लब्धिरूप ज्ञानचेतना (2) उपयोगरूप ज्ञानचेतना। प्रश्न २५७-लब्धिरूप ज्ञानचेतना किसे कहते हैं ? उत्तर-सम्यक्त्व से मविनाभूत ज्ञानचेतना को आवरण करने वाले मतिश्रुतज्ञानावरण के विशिष्ट क्षयोपशम को लब्धिरूप ज्ञानचेतना कहते है / वह ज्ञान के उघाडरूप है। प्रन्न 258- उपयोगरूप ज्ञानचेतना किसे कहते हैं ? उत्तर-लब्धिरूप ज्ञानचेतना की प्राप्ति होने पर जब ज्ञानी अपने उपयोग को सब परज्ञेयो से हटाकर केवल निजशुद्ध आत्मा को सवेदन