Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 276
________________ ( 266 ) करने के लिए स्व से जोडता है, उस समय उपयोगात्मक ज्ञानचेतना होती है / यह ज्ञान के स्व मे उपयोगरूप है। प्रश्न २५६-लन्धिरूप ज्ञानचेतना किन के पाई जाती है ? उत्तर-चौथे से बारहवे गुणस्थान तक सभी जीवो के हर समय पाई जाती है। प्रश्न २६०-उपयोगरूप ज्ञानचेतना किन के पाई जाती है ? उत्तर-चौथे पाँचवे छठे वालो के कभी-कभी पाई जाती है और सातवे से निरन्तर अखण्डधारारूप से पाई जाती है। प्रश्न २६१-सवर निर्जरा ज्ञानचेतना के आधीन है या सम्यक्त्व के आधीन है ? उत्तर-ज्ञानचेतना तो ज्ञान की पर्याय है। ज्ञान का बन्ध मोक्ष से कोई सम्बन्ध नही है। सवर निर्जरा की व्याप्ति तो सम्यक्त्व से है। अत वे सम्यक्त्व के आधीन हैं चाहे उपयोग स्व मे रहे या पर मे जावे / (3) व्याप्ति अधिकार प्रश्न २६२-व्याप्ति किसे कहते हैं ? उत्तर–सहचर्य नियम को व्याप्ति कहते हैं। प्रश्न २६३-व्याप्ति के कितने भेद हैं ? उत्तर-दो (1) समव्याप्ति (2) विपम व्याप्ति / प्रश्न २६४-समव्याप्ति किसे कहते हैं ? उत्तर-दोनो ओर के सहचर्य नियम को समव्याप्ति कहते हैं [अर्थात् किन्ही दो चीजो के सदा साथ रहने को और कभी जुदा न रहने को समव्याप्ति कहते है] जैसे सम्यक्त्व और दर्शनमोह का अनुदय / इन दो पदार्थों मे कभी आपस मे व्यभिचार नहीं मिलता अर्थात् एक मिले और दूसरा न मिले ऐसा कभी नही होता। दोनो इकट्ठे ही मिलते हैं / इसलिये इनमे समव्याप्ति है। समव्याप्ति परस्पर मे दोनो की होती है। इसको इस प्रकार बोलते हैं-जहाँ-जहाँ सम्यक्त्व है वहाँ

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