Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 262
________________ ( 252 ) (64) 3. कर्ता है-आत्मा पुण्य पाप का कर्ता है। (65) 4. भोक्ता है-आत्मा पुण्य पाप का भोक्ता भी है। यह पुण्य पाप का कर्ता भोक्तापना मिथ्यादृष्टि मे है। निश्चय नय से आत्मा उनका कर्ता कि भोक्ता नहीं है। (66) 5. अस्ति ध्रुव (मोक्ष) है-निर्वाण स्वरूप अस्ति ध्रुव है / व्यक्त निर्वाण-वह अक्षय मुक्ति है और (67) 6. मोक्ष का उपाय है-सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र वह मोक्ष का उपाय है। सम्यक्त्व के ये 67 भेद परमात्मा की प्राप्ति का उपाय है। हमारा नोट-सम्यक्त्व तो एक ही प्रकार का होता है। उसमे भेद नही होते / उससे अविनाभावी उस सम्यग्दृष्टि आत्मा के ज्ञान चारित्र आदि मे क्या-क्या विशेषताएं आ जाती हैं उनका यह कथन है। चिद्विलास के अतिरिक्त और किसी शास्त्र मे हमारे देखने मे नही आया है। मुमुक्षुओ के लिए अत्यन्त उपयोगी समझकर यहाँ दे दिया है। कण्ठस्थ करने योग्य प्रश्नोत्तर प्रश्न 230-- सम्यग्दर्शन किसको कहते हैं ? उत्तर-आत्मा के सम्यक्त्व (श्रद्धा) गुण की स्वभावपर्याय को सम्यग्दर्शन कहते हैं / यह शुद्ध भाव रूप है / राग रूप नही है / आत्मा की एक शुद्धि विशेष का नाम है। तत्त्वार्थश्रद्धान या आत्मश्रद्धान उस का लक्षण है। ये चौथे से सिद्ध तक सब जीवो मे एक जैसा पाया जाता प्रश्न २३१-मिथ्यादर्शन किसको कहते हैं ? उत्तर-आत्मा के सम्यक्त्व (श्रद्धा) गुण की विभाव पर्याय को मिथ्यादर्शन कहते हैं / यह मोह रूप है। आत्मा मे कलुषता है / स्वपर का एकत्व इसका लक्षण है। प्रश्न २३२-सम्यक्त्व का लक्षण स्वात्मानुभूति क्या है ?

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