Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 238
________________ ( 228 ) प्रश्न २०१-निमित्त नैमित्तिक संबंध के नामान्तर बताओ? उत्तर-निमित्त नैमित्तिक, अविनाभाव, कारणकार्य, हेतु हेतुमत्, कर्ता-कर्म, साध्य साधक, बध्य बन्धक, एक दूसरे के उपकारक वस्तु स्वभाव, कानूने कुदरत Autometic system ये शब्द पर्यायवाची हैं। सब शब्दो का प्रयोग आगम मे मिलता है। अर्थ केवल निमित्त की उपस्थिति मे उपादान का स्वतन्त्र निरपेक्ष नैमित्तिक परिणमन है (प्रमाण श्रीपचास्तिकाय गाथा 62 टीका) प्रश्न २०२-जीव कर्म और उनके बंध की सिद्धि करो ? उत्तर-प्रत्यक्ष अपने मे सुख-दुःख का सवेदन होने से तथा "मैं-मैं" रूप से अपना शरीर से भिन्न अनुभव होने से जीव सिद्ध है। कोई दरिद्र कोई धनवान देखकर उसके अविनाभावी रूप कारण कर्म पदार्थ की सिद्धि होती है। जीव मे रागद्वेषमोह और सुख-दुख रूप विभाव भावो की उत्पत्ति उनके बध को सिद्ध करती है। यदि इनका वध न होता तो जीव धर्मद्रव्यवत् विभाव न कर सकता / (773, 818, 816) प्रश्न २०३-वैभाविकी शक्ति किसे कहते हैं ? उत्तर-आत्मा मे ज्ञानादि अनन्त शुद्धशक्तियो की तरह यह भी एक शुद्ध शक्ति है / पुदगल कर्म के निमित्त मिलवे इसका विभाव परिणमन होता है / स्वत. स्वभाव परिणमन होता है। इसी प्रकार पुद्गल मे भी यह एक शक्ति है और उसका भी दो प्रकार का परिणमन होता है। इसी शक्ति के कारण जीव ससारी और सिद्ध रूप बना है / (848,846) प्रश्न २०४-~-आत्मा को मूर्त क्यो कहते हैं ? उत्तर-जब तक आत्मा विभाव परिणमन करता है तब तक विभाव के कारण उसे उपचार से मूर्त कहा जाता है। वास्तव मे वह अमूर्त ही है। (828)

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