Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 04
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 254
________________ ( 244 ) शुभ व्यवहार चारित्र का विवेचन है और 77 से 158 तक वीतराग अश रूप निश्चय चारित्र का वर्णन है। श्रीद्रव्यसग्रह मे सूत्र 41 मे शुद्ध सम्यग्दर्शन का, सूत्र 42 मे शुद्ध सम्यग्ज्ञान का, सूत्र 45 मे व्यवहार चारित्र का-इसमे चारित्र का सम्यक् विशेषण नहीं है यह खास देखने की बात है यद्यपि ज्ञानी का विकल्प है। सूत्र 46 मे वीतराग चारित्र का, अज्ञानी को व्यवहार भी नहीं कहा। हमे यह पद्धति बहुत पसन्द आई है। श्री पुरुपार्थसिद्धयुपाय मे तीनो शुद्ध भाव रूप लिए हैं। राग को अगीकार नही किया बल्कि राग का तो निषेध किया है। श्री तत्त्वार्थसार मे ज्ञानी मुनि की विकल्पात्मक प्रवृत्ति को व्यवहार सज्ञा दी है और निविकल्प मुनि को निश्चय सज्ञा दी है। श्री पचास्तिकाय मे भी यही बात है। श्रीसमयसार मे शुद्ध अशको निश्चय रत्नत्रय और राग अग को व्यवहार कहा है पर उस राग के साथ सम्यक् विशेपण नही है। 10 टोडरमल जी के अन्तिम नवमे अध्याय मे शुद्ध असली सम्यक्त्व है उसको तो निश्चय सम्यक्त्व कहा है और जितने अश मे राग है अर्थात् ज्ञान के साथ उस जाति का बुद्धिपूर्वक विकल्प है उसको व्यवहार सम्यक्त्व कहा है। इस प्रकार दोनो प्रकार के सम्यक्त्व को एक समय मे कहा है तथा उससे आगे वे लिखते है कि सम्यग्दृष्टि के राग पर ही व्यवहार सम्यक्त्व का आरोप माता है। मिथ्यादृष्टि के राग पर नही अर्थात् मिथ्यादृष्टि के राग को व्यवहार सम्यक्त्व नहीं कहते / सम्यक्त्व की उत्पत्ति से पहले जो विकल्पात्मक नौ पदार्थ की श्रद्धा है वह मिथ्या श्रद्धा है उसको व्यवहार सम्यक्त्व नही कहते। आगे चलकर लिखते हैं कि जिस जीव को नियम से सम्यक्त्व होने वाला है और वह करण लब्धि मे स्थित है उसकी विकल्पात्मक श्रद्धा को तो व्यवहार सम्यक्त्व कह सकते हैं क्योकि वहाँ नियम से निश्चय सम्यकत्व उत्पन्न होने वाला है। श्रीजयसेन आचार्य तथा श्रीब्रह्मदेव सूरि आदि जिन आचार्यों ने एक समय मे व्यवहार निश्चय रूप दोनो प्रकार का मोक्षमार्ग माना है उन्होने तो शुद्ध दर्शन ज्ञान चारित्र पर्यायो को

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