________________ ( 197 ) (1) वस्तु मे नित्य धर्म है जिसके कारण वस्तु अवस्थित है / इस धर्म के जानने से पता चलता है कि द्रव्य रूप से तो मोक्ष वस्तु मे वर्तमान मे विद्यमान ही है तो फिर उसका आश्रय करके कैसे नहीं प्रकट किया जा सकता। (B) अनित्य धर्म से पता चलता है कि पर्याय मे मिथ्यात्व है, राग है, दुख है। साथ ही यह पता चल जाता है कि परिणमन स्वभाव द्वारा बदलकर यह सम्यक्त्व, वीतरागता और सुख रूप परिवर्तित किया जा सकता है तो भव्य जीव नित्य स्वभाव का आश्रय करके पर्याय के दुख को सुख मे बदल लेता है। (c) मानो वस्तु ऐसे ख्याल मे न आवे। केवल एकान्त नित्य ख्याल मे आवे तो अपने को अभी सर्वथा मुक्त मान कर निश्चयाभासी हो जायेगा और पुरुपार्थ को लोप करेगा। (D) केवल अनित्य ही वस्तु ख्याल मे आई तो मूल तत्त्व ही जाता रहा। सारा खेल ही बिगड गया। पुरुषार्थ करने वाला कर्ता हो न रहा। इस प्रकार वस्तु अनेकान्तात्मक है। यह प्रत्यक्ष अनुभव मे आता है। (2) एक जगह दुख होने से सम्पूर्ण मे दुख होता है इससे उस की अभेदता, अखण्डता, एकता ख्याल मे आती है। (B) चौथे गुणस्थान मे क्षायिक सम्यक्त्व हो जाता है। चारित्र मे पुरुषार्थ की दुर्बलता के कारण कृष्ण लेश्या चलती है। इससे वस्तु की भेदता, अनेकता खण्डता का परिज्ञान प्रत्यक्ष होता है। (3) जो यहाँ पुण्य करता है वही स्वर्ग मे सुख भोगता है। जो यहाँ पाप करता है वही नरक मे दुख भोगता है। जो यहाँ शुद्ध भाव करता है मोक्ष मे निराकुल सुख पाता है। इससे उसके तत्धर्म का ज्ञान होता है। (B) हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि लड़का मर जाता है / घर वाले रोते हैं। जिसके यहाँ जन्म लेता है, वह जन्मोत्सव मनाते हैं। इस पर्याय