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( ८४ ) और शुभकर्मों के फल मे राग करना यह अगृहीत मिथ्यादर्शन है। (५) निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र जीव को हितकारी हैं स्वरूप स्थिरता द्वारा राग का जितना अभाव वह वैराग्य है और सुख कारण है परन्तु निश्चय सम्यग्दर्शनादि को कष्टदायक मानना यह अगृहीत मिथ्यादर्शन है । (६) सम्यग्ज्ञान पूर्वक इच्छाओ का अभाव ही निर्जरा है और वही आनन्दरूप है परन्तु अपनी शक्ति को भूलकर इच्छाओ की पूर्ति मे सुख मानना अगृहीत मिथ्यादर्शन है। (७) मुक्ति मे पूर्ण निराकुलतारूप सच्चा सुख है उसके बदले भोग सम्बन्धी सुख को ही सुख मानना यह अगृहीत मिथ्यादर्शन है।
प्रश्न ७२~-भावदीपिका में अग्रहीत मिथ्यात्व कितने प्रकार का बताया है ?
उत्तर-आठ प्रकार का बताया है। (१) परद्रव्य मे अहबुद्धिरूप-यह मिथ्यात्व भाव है। (२) परगुण मे अहबुद्धि रूप यह मिथ्यात्व भाव है। (३) पर पर्यायो मे अहवुद्धि रूप- यह मिथ्यात्व भाव है। (४) पर द्रव्य मे ममकार बुद्धिरूप-यह मिथ्यात्व भाव है। (५) पर गुण मे ममकार बुद्धि रूप-यह मिथ्यान्व भाव है। (६) पर पर्याय मे ममकार बुद्धि रूप-यह मिथ्यात्व भाव है। (७) दृष्टिगोचर पुद्गल पर्यायो मे द्रव्य बुद्धिरूप---यह मिथ्यात्व भाव है। (८) अदृष्टिगोचर द्रव्य-गुण-पर्यायो मे अभावरूपबुद्धि-यह मिथ्यात्व भाव है।
प्रश्न ७३--परद्रव्य मे अहबुद्धिरूप मिथ्यात्वभाव क्या है ?
उत्तर-पर द्रव्य जो शरीर पुद्गल पिण्ड उसमे जो अहबुद्धि "यह मैं हूँ" यह पर द्रव्य मे अहबुद्धि रूप मिथ्यात्व भाव है।
प्रश्न ७४-परगुण में अहंबुद्धिरूप मिथ्यात्वभाव क्या है?
उत्तर-पुदगल के स्पशा दिगुण उनमे अहबुद्धि होना। जैसे-मै गरम, मैं ठण्डा, मैं कोमल, मैं कठोर, मैं हल्का, मैं भारी, मैं रूखा, मैं खटा, मैं मीठा, मैं कडुवा, मैं चरपरा, मैं कपायला, मैं दुर्गधीवाला,