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( ७२ ) कार्य का नाम प्रयोजन है। इस जीव का प्रयोजन तो एक यही है कि दु.ख ना हो और सुख हो। किसी जीव के अन्य कुछ भी प्रयोजन नही है।
प्रश्न ३०-दुःख का नाश और सुख की उत्पत्ति किसके द्वारा हो सकती है ?
उत्तर-सात तत्वो के सच्चे श्रद्धान के आश्रित ही दुख का नाश और सुख की प्राप्ति हो सकती है।
प्रश्न ३१-सात तत्वो के सच्चे श्रद्धान से ही दुख का अभाव सुख की प्राप्ति कैसे हो सकती है ?
उत्तर-प्रथम तो दुख दूर करने मे अपना और पर का ज्ञान अवश्य होना चाहिए। [अ] यदि अपना और पर का ज्ञान नहीं हो तो अपने को पहिचाने बिना अपना दु ख कैसे दूर करे [आ] अपने को और पर को एक जानकर अपना दुख दूर करने के अर्थ पर का उपचार करे तो अपना दुख नौसे दूर हो ? [s] आप (स्व है) और पर भिन्न है, परन्तु यह पर मे अहकार-ममकार करे तो इससे दुख ही होता है। इसलिए अपना और परका ज्ञान होने पर ही दुख दूर होता है तथा अपना और परका ज्ञान जीव-अजीव का ज्ञान होने पर ही होता है, क्योकि आप स्नय जीव है, शरीरादिक अजीब है। यदि लक्षणादि द्वारा जीव-अजीव की पहिचान हो तो अपनी और परकी भिन्नता भासित हो इसलिए जीब-अजीन को जानना। इस प्रकार जीव-अजीव का यथार्थ श्रद्धान करने पर स्व-पर का श्रद्धान होता है और उससे सुख उत्पन्न होता है । जीब-अजीब का अयथार्थ श्रद्धान करने पर स्व-पर का श्रद्धान न हो। रागादिक को दूर करने का श्रद्धान न हो और उससे दुख उत्पन्न हो। इसलिए आस्रव, बध, सवर-निर्जरा और मोक्ष सहित जीवअजीब तत्व प्रयोजन भूत समझने चाहिए। आस्रव और वव दुख के कारण है तथा सवर, निर्जरा और मोक्ष सुख के कारण हैं, इसलिए जीवादि सात तत्वो का श्रद्धान करना आवश्यक है। इन सात तत्वो की