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( ३२ ) भी है और व्यवहार व्यवहार से भी है निश्चय से भी है तो निश्चयव्यवहार के अनेकान्त को नहीं समझा है।
प्रश्न ४६-उपादान-निमित्त के अनेकान्त को कब समझा और कब नहीं समझा?
उत्तर-(१) उपादान उपादान से निमित्त से नहीं है और निमित्त निमित्त से है उपादान से नहीं है तो उपादान-निमित्त के अनेकान्त को समझा है। (२) उपादान उपादान से भी है निमित्त से भी है और निमित्त निमित्त से भी है उपादान से भी है तो उपादान-निमित्त के अनेकान्त को नही समझा है।
प्रश्न ५०-कुन्दकुन्दाचार्य ने स्वयं अपना कल्याण किया और साथ मे दूसरों का भी कल्याण किया-इसमे अनेकान्त को कब समझा और कब नहीं समझा?
उत्तर-(१) कुन्दकुन्दाचार्य ने स्वय अपना कल्याण किया दसरों का कल्याण नहीं किया तो अनेकान्त को समझा है। (२) कुन्दकुन्दाचार्य ने स्वय अपना कल्याण किया और साथ मे दूसरो का भी कल्याण किया तो अनेकान्त को नहीं समझा।
प्रश्न ५१-मानतुंगाचार्य ने ४८ ताले तोड़े, इसमे अनेकान्त को कव समझा और कब नहीं समझा ?
उत्तर-(१) ताले अपनी योग्यता से टूटे है मानतुगाचार्य से नही तो अनेकान्त को समझा है। (२) ताले अपनी योग्यता से भी टूटे है और मानतुगाचार्य से भी टूटे हैं तो अनेकान्त को नहीं समझा।
प्रश्न ५२-सीता के ब्रह्मचर्य से अग्नि शीतल हो गई इसमें अनेकान्त को कब समझा और कव नहीं समझा ?
उत्तर-प्रश्न ५० या ५१ के अनुसार उत्तर दो।
प्रश्न ५३-मनोरमा के शील से दरवाजा खुल गया इसमे अनेकान्त को कब समझा और कब नहीं समझा?
उत्तर-प्रश्न ५० या ५१ के अनुसार उत्तर दो।