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प्रश्न ४० - शास्त्रों में 'ही' का प्रयोग किस-किस दृष्टि से किया
है
उत्तर- ( १ ) एक दृष्टि से कथन करने मे 'हो' आता है । (२) 'ही' दृढता सूचक है । (३) जहां अपेक्षा स्पष्ट बतानी हो वहाँ 'हो' अवश्य लगाया जाता है । (४) 'ही' अपने विषय के बारे में सब शकाओ का अभाव कर दृढता बताता है । जैसे—-आत्मा द्रव्यदृष्टि से शुद्ध ही है । (५) 'ही' सम्यक् एकान्त को बताता है ।
प्रश्न ४१ - शास्त्रों में 'भी' का प्रयोग किस-किस दृष्टि से किया जाता है ?
उत्तर- ( १ ) प्रमाण की दृष्टि से कथन मे 'भी' आता है ? जैसेआत्मा शुद्ध भी है और अशुद्ध भी है । (२) अपूर्ण को पूर्ण न समझलिया जावे, इसके लिए 'भी' का प्रयोग होता है (३) जो बात अश के विषय मे कही जा रही है । उसे पूर्ण के विषय मे ना समझ लिया जावे, इसके लिए 'भी' का प्रयोग होता है । दूसरे प्रकार के शब्दो में कहा जावे । (१) ( सापेक्ष) जहाँ कोई अपेक्षा ना दिखाई जावे वहाँ पर 'भी' का प्रयोग होता है । जैसे- द्रव्य नित्य भी है और अनित्य भी है। (२) (सम्भावित ) जितनी वस्तु कही है उतनी ही वस्तु मात्र नही है दसरे धर्म भो उसमे हैं यह बताने के लिए 'भी' का प्रयोग होता है । (३) (अनुक्त) अपनी मनमानी कल्पना से कैसा भी धर्म वस्तु मे फिट कर लिया जावे, ऐसे मनमानी के कल्पना के धर्मों को निषेध के लिए 'भी' का प्रयोग होता है ।
प्रश्न ४२ – व्यवहार उपचार कब कहा जा सकता है ?
उत्तर - ( १ ) जिसको निश्चय प्रगटा हो उसी को उपचार लागू होता है, क्योकि अनुपचार हुए बिना उपचार लागू नही होता है । (२) व्यवहार या उपचार यह झूठा कथन है, क्योकि व्यवहार किसी को किसी मे मिलाकर निरुपण करता है इसके श्रद्धान से मिथ्यात्व होता है इसलिए इसका त्याग करना । जहाँ जहाँ व्यवहार या उपचार