Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha Part 2
Author(s): Vijaymurti M A Shastracharya
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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રૂઢ
जैन - शिलालेख संग्रह
२ तस्य पुत्रो कुम [[]रभटि गधिको तस न प्रतिमा वर्धमा
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२. कुमार३. मित्रा
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साराश-- आर्य बलदिन ( बलदत्त ) की शिष्या कुमरमित्रा ( कुमारमित्रा ) थी । वह कोट्टिय गण, स्थानीय कुल, बहरा शाखा ( तथा ). शिरिक सभोक (संभोग) की थी । उसका पुत्र कुमारभटि गन्धिक ( तेल, इनका व्यापार करनेवाला ) था । उसने तीक्ष्ण, उज्वल, प्रबुद्ध कुमारमित्राके आदेश से वर्धमानकी प्रतिमाकी प्रतिष्ठा की ।
[El, 1, n° XLIII, n' 7 ]
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मथुरा - प्राकृत |
[ हुविष्क संवत् ३९ - हस्तिस्तम्भ ]
१ महाराजस्य देवपुत्रस्य हुविष्कस्य सं० ३९ २. हे ३ दि० ११ एतय पुर्वये नन्दि विशाल ३ प्रतिष्ठापितो सिवदास श्रेष्ठपुत्रेण श्रेष्ठिना
४. अन रुद्रदासेन अरहतन पुजाये
अनुवाद - देवपुत्र महाराज हुविष्क के राज्यमें, सं० ३९ की शीतऋतु के नीसरे महीनेके ११ वे दिन, यह विशाल नन्दी शिवदास श्रेष्ठीके पुत्र आर्य श्रेष्टी रुद्रदासने अर्हन्तोकी पूजाके लिये बनवाया (१८ ई० पूर्व ) ।
[A Cunningham, Reports, III, p 32-33, n° 9]
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