Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 575
________________ ३८६ आसपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख त्वदित्युन्नतजातिथिं सममेनल्सङ्गामरङ्गाप्रदालू मदवद्वैरिकुलप्रतापिविनयादित्यं धराधीश्वरं ॥ ३ ॥ क || विनयादित्यन तनयं जननुतन एरेयङ्गभूभुजं तत्तनुजं । विनुत ं विष्णुनृपालं मनस्वि तदपत्यं नेग... नरसिंहं ॥ ४ ॥ वृ ॥ नतनरपालजालक विशाल विजृम्भितबालभासुरो द्धततिल... गलनाहवरङ्गरामनू जित निज पुण्यपुञ्जबल साधित सर्व्व.. . महोन्नति केविन्देसेदं नरसिंह भूभुजं ।। ५ । ..... क || - नरसिंहनृपाङ्ग भूते पट्टमहदेवि तत्स तियादल । मानिनिय एचल देविये . दानगुणख्यात कल्पलते वोल आ... ।। ६ ।। वृ ॥ ललनालीलेगे मुन्नवेन्तु मदनं पुट्टिईना- विष्णुगं विलसच्छ्रीवधुविङ्गवन्ते नरसिंहक्षोणिपालङ्गव एचलदेविप्रियेगं परार्थचरितं पुण्याधिकं पुट्टिदं बलवद्वैरिकुलान्तकं जयभुजं बल्लाल भूपालकं ॥ ७ ॥ गतलीलं लालनालम्बित बद्दलभय प्रज्वरं गूर्जर सन्धृतशूल' गौलनङ्गीकृतकृशतरसम्पन्नव पल्लव ं । प्रोज्झितचोलं चोलनादं कदनवदनदाल भेरियं पोटसेवीराहितभूभृज्जाल कालानलवतुलभुजं वीरबल्लालदेव' ||८|| Jain Education International A For Private & Personal Use Only • www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662