Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 629
________________ मुनिचन्द्रदेव, उदयचन्द्रके शिष्य १३७ | मौनीगुरु २, ९ भू० १४९. __ भू. १५९. मौर्य १०५ भू० १२५. मुनिवंशाभ्युदय (चिदानन्दकृत) भू० २७, ४५, ५९, ६२, १०५. | | यशोबाहु १०५. मूलसंघ ४०, ४१, ४३, ४५-५०, ५३, ५५, ५६, ५९, ६३, ६४, यशःकीर्ति, गोपनन्दिके शिष्य ५५ भू० ९०, १०५, १११, १२४, १२९, ११२, १३३, १४३. यशःपाल भू० १२६, १२७. १३०, १३२, १३७, १३८, १४४, | यशोबाहु भू० १२६. २२९, ३१७, ३१८-३२०,३२४, ३२७, ३३२, ३६०, ३६८, ३६९, यशोभद्र भू० १२६, १२७. ४२१, ४२६, ४३०, ४४६, ४७१, ४७३, ४८९, ४९१,४९२,४९४, रत्नकरण्ड श्रावकाचार (समन्तभद्रकृत) ४९९, ५०० भू० १०३, १२९, भू. ७६. १३१, १३३, १३५, १३६, १४४. रत्ननन्दि, ललितकीर्तिके शिष्य भू.. मेघचन्द्र, गुणचन्द्रके सधर्म, ४२ ५८, ६०. मेघचन्द्र, नयकीर्तिके शिष्य, ४२. रत्नमालिका ( अमोघवर्षकृत)भू० ७६. मेघचन्द्र, बालचन्द्र के शिष्य, ४९६, | रविचन्द्र, कलधौतनन्दिके शिष्य ४२, भू. १५७. ४३, २३१. मेघचन्द्र, माघनन्दिके शिष्य, ५५ भू. | रविचन्द्र ५३ भू० १५५. १३३. राघवपाण्डवीय (श्रुतकीर्तिकृत ) ४० । मेघचन्द्र, वीरनन्दिके गुरु ४१. । भू० १४३. मेघचन्द्र, सकलचन्द्र के शिष्य ४७,५०, राजकीर्ति ११९ भू० १६१. ५३, ५६, भू० ९१, ९२, ११६, राजावलिकथा ( देवचन्द्रकृत ) भू० १५४. मेघनन्दि २१५ भू० १००, १५१. राज्ञीमति गन्ति ( आर्यिका ) २०७. मेरुधीर १०५ भू० १२८. रामचन्द्र, बालचन्द्रके शिष्य ४१ भू० मेल्लगवासगुरु २३ भू० १५१. १३०. मैत्रेय १०५ भू० १२५. रामिल्ल भू० ५७. मौण्ड्य १०५ भू० १२५. राय-चामुण्डराय १३७. मौनियाचारिय ३१ भू० १५१. रूपसिद्धि ( दयापालकृत ) ५४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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