Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 631
________________ शशिमति गन्ति ( आर्यिका) ३५. शुभचन्द्र, गं० वि० म० दे० के शिष्य, शाकटायन सूत्रन्यास भू० १४१. ४३, ४५-४९, ५९, ६३--६५, शान्तकीर्ति, अजितकीर्तिके शिष्य ७२ / ९०, १३९, १४४, ३६०, ४४६, भू० १६२. ४४७, ४८६, ४८९ भू० ४९, शान्तनन्दि २२४. ९१, ९२, १५३, १५५. शान्तराज पं०, भू० १९, २१, ३३. शुभचन्द्र, माघनन्दिके शिष्य, ४७१ शान्तिकीर्ति ११२, ११३ भू० १३७. । भू० ९८, १३०, १५८. शान्तिदेव ५४, ४९३ भू० ८६, १३७, | शुभचन्द्र, म. रामचन्द्रके शिष्य ४१ १४०. भू. ११२. शान्तिनाथ, अजितसेनके शिष्य, ५४ श्रीकीर्ति १०५. - भू. १४०. श्रीदेव १४५. शान्तिभट्टारकाचार्य ११३ भू० १३७. श्रीदेवाचार्य २१३ भू० १५२. शान्तिसिंग पं० ४९५ भू. १५८. श्रीधरदेव, दामनन्दिके शिष्य, ४२,४३. शान्तिसेन १७-१८ भू० ५६, १४९. | श्रीनन्याचार्य ४९३ भू० १३७. शान्तिसेनदेव ४९३ भू. १३७. | श्रीपाल ५४, ४९३, ४९५, भू० ८८, शान्तीश, गुणचन्द्र म के गुरुभू० ८२. | ___ ९९, १३७, १३९, १५८. शास्त्रसार ( ग्रंथ ) १२९ भू० १००. | श्रीपूरान्वय ( देखो पूरान्वय ) २२० शिवकोटि, आचार्य, सूरि, समन्त | भू. १४७. भद्रके गुरु, १०५ भू० १३४, १४१. श्रोभूषण १०५. श्रीमति गन्ति ( आर्यिका ) १३९ शुभकीर्ति, चतुर्मुखदेवके शिष्य, ५५ श्रीवर्धदेव ५४ भू० १३८. भू० १३३. श्रीविजय ५४, ४९३ भु० ७५, १३७, शुभकीर्ति, देवकीर्तिके शिष्य, ४० भू० | १३९. ११६. श्रीविहार ( उत्सव ) ४३५, ४३६. शुभकीर्ति, देवेन्द्र विशालकीर्तिके शिष्य, श्रीसंघ २२०. १११ भू० १३६. . श्रुतकीर्ति, ४०, १०५, १०८ भू० शुभकीर्ति, बालचन्द्रके शिष्य, ५०, | १३५, १४३. १८८ भू० १५५. | श्रुतकेवलि ४०, ५४, १०५, १०८. शुभचन्द्र, देवकीर्तिके शिष्य, ४० भू० श्रुतबिन्दु ( चन्द्रकीर्तिकृत) ५४ भू० १३९. . www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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