Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 658
________________ माणिकचन्द - दिगम्बर जैन ग्रन्थमालाका सूचीपत्र केवल संस्कृत - प्राकृत के ग्रन्थ । [ इस ग्रन्थमालाके तमाम ग्रन्थ लागत मूल्यपर बेचे जाते हैं, अतएव इसके सभी ग्रन्थ बहुत सस्ते हैं । ] अनन्त १ लघीयस्त्रयादिसंग्रह - ( १ भट्टाकलंक देवकृत लघीयस्त्रय कीर्तिकृत तात्पर्यवृत्तिसहित २ भट्टाकलंक देवकृत स्वरूपसम्बोधन, ३-४ अनन्तकीर्तिकृत लघु और बृहत्सर्वज्ञसिद्धि ) पृष्ठसंख्या २२४ | मूल्य | = ) , २ सागारधर्मामृत - पं० आशाधरकृत, स्वोपज्ञभव्यकुमुदचन्द्रिका टीकासहित । पृष्ठसंख्या २६० । - ३ विक्रान्तकौरवीय नाटक - कवि हस्तिमल्लकृत | पृ० १७६ | मू0 17) ४ पार्श्वनाथचरित — श्रीवादिराजसूरिप्रणीत । पृ० २१६ । मू० ॥) ५ मैथिलीकल्याण – कविवर हस्तिमलकृत नाटक | पृ० १०४ । मू०|) ६ आराधनासार - आचार्य देवसेनकृत मूल प्राकृत और पण्डिताचार्य रत्नकीर्तिदेवकृत संस्कृतटीका । पृष्ठसंख्या १३२ । मू० । ) ॥ ७ जिनदत्तचरित - श्रीगुणभद्राचार्यकृत काव्य । पृ० १०० । मू० ॥ ॥ ८ प्रद्युम्नचरित - परमार राजा सिन्धुलके दरबारी और महामहत्तर श्रीपपटके गुरु आचार्य महासेनकृत काव्य । पृ० २३६ ॥ मू० ॥ ) ९ चारित्रसार - श्रीचामुण्डराय महाराजरचित | पृ० १०८ | मू० 17 ) १० प्रमाणनिर्णय श्रीवादिराजसूरिकृत न्याय । पृ० ८४ । मू० ।-) ११ आचारसार - श्रीवीरनन्दि आचार्यप्रणीत यतिधर्मशास्त्र । इसमें मुनियोंके आचारका वर्णन है । पृ० १०४ । मूल्य 17 ) १२ त्रिलोकसार - श्रीनेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्तीकृत मूल गाथा और माधवचन्द त्रैविद्यदेवकृत संस्कृतटीका । पृ० ४४० | मू० १ || ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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