Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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श्रुतमुनि, अभयचन्द्रके शिष्य,
भू० ३८, १०४, १३५. श्रुतमुनि, पण्डितार्य के शिष्य, ५२ भू०
१६०.
श्रुतमुनि, सिद्धान्तयोगी के शिष्य, १०८,
भू० ११६, १३५. श्रुतसागर वर्णि ११६ भू० १६१. श्रुतावतार (इन्द्रनन्दिकृत) भू० १२७,
१२८.
१०५
स
सकलचन्द्र, अभयनन्दिके शिष्य ४७,
५०.
१५
सत्ययुधिष्ठिर ( चामुण्डरायकी उ० · ) भू० ७३.
सन्दिगगण २१ भू० १५०. सन्मतिसागर, चारुकीर्तिके शिष्य ४३५
४३६, ४५५-४५७ भू० १६२. सप्तमहर्षि ४०, ४२, ४३, ४७, ५०,
५४.
समस्त विद्यानिधि उ० भू० १४१. समाधिशतक ( पूज्यपादकृत ) ४० भू०
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१४१.
सम्यक्त्वचूडामणि उ० ५३, ५६, ९०,
१०६, १३८, १४४, ३६०, ४२१, ४३०, ४८६, ४९१, ४९२, ४९३, ४९७, ४९९.
सम्यक्त्वरत्नाकर उ० ४३, ४४, ४७. सरसजनचिन्तामणि ( शान्तराजकृत )
• समन्तभद्र ४०, ५४, १०५, १०८,
भू० ५१, ९८, १५८.
४९३ भू० १३१, १३४, १३६, सातनन्दिदेव २२४ भू० १५३.
१३८, १४१.
सायब्बे कान्तियर (आर्यिका ) २२७. सारत्रय ( चारुकीर्तिकृत ) १०८. सिताम्बर = श्वेताम्बर १०५. सिद्धनन्दि ६३. सिद्धान्तयोगी, पंडितके शिष्य १००
भू० १९.
सर्वगुप्त १०५ भू० १२८. सर्वज्ञ १०५ भू० १२८. सर्वज्ञचूडामणि ८१.
सर्वज्ञ भट्टारक १५३ भू० १५१. सर्वनन्दि, चिकुरापदवियके शिष्य १६२
भू० १५१. सर्वार्थसिद्धि ( पूज्यपादकृत ) ४० भू० १४१, १४२.
सन्यसन, सन्यास, सल्लेखना, समाधि
१, ७, ८, १३, १४, २६, २९, ३८, ४४, ४७, ४८, ४९, ५१५४, १०५, १०८, १३९, १५५, १८६, २०७, ४६९, ४७९.
सम्पूर्णचन्द्र = रविचन्द्र, कलधौतनन्दिके
शिष्य ४२, ४३. सरस्वतीगच्छ भू० ६५. सागरनन्दि, शुभचन्द्रके शिष्य ४७१
भू० १३५. सिद्धार्थ १, १०५ भू० ६२, १२६. सिंगणन्दिगुरु, बेहेडेगुरुके शिष्य १९ भू० १५०.
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