Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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प्रासपास के ग्रामों के प्रवशिष्ट लेख ४०५ करविद्वज्जननुतनेनिप
स्थिरपुण्य चन्द्रमौलिमन्त्रिललामं ॥ १२ ।। नुतबल्लालनृपालदक्षिणभुजादण्डं पयःपुरहा
र-तुषारस्फटिकेन्दुकुन्दकमनीयोद्यद्यशोवार्द्धिवे. ष्टितदिक्चक्रनपारपुण्यनिलय निश्शेष विद्वज्जन
स्तुतनप्पी-विभुचन्द्रमौलिसचिव धन्यं पेरर्द्धन्यरे
प्रा-चन्द्रमौलिगखिलक___लाचतुरङ्गमलकीर्तिगसदृशविभवगाचाम्बिके गुणवाड़ि स.
दाचारसमेते चित्तवल्लभेयादल ॥ १४ ॥ हरिणीलोचने पङ्कजानने धनस्रोणिस्तनाभोगभा
सुर बिम्बाधरे कोकिलस्वने सुगन्धश्वासे चञ्चत्तनूदरि भृङ्गावलिनीलकेशे कलहंसीयाने सत्कम्बुकन्धरेयप्पाचलदेवि कन्तु सतियं सौन्दर्यदिन्देलिपल
॥१५॥ त्रिकुलकं ॥ सुकविसुरतरुशिलेयना
यक चन्द्राम्बिकेय मगनेनिप सेोवण नायकनय्य तायि बाचा
म्बिकं देशिदण्डनायकं हिरियण्ण । १६ ।। भयलोभदुर्लभ बम्मेय
नायकनिद्धकीर्त्ति किरियपणं मा
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