Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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४१४ आसपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख भीमार्जुन-लवकुशरिव
रीमाल्केयेनल्के तम्मुति–र ......। श्रीमन्मरियानेयमु
दामगुण भरतराजदण्डाधिपरु ।। ३ ।। श्रीविष्णु पोयसलङ्गखि
लावनिय......दल.........साधिसि...। ...विदित भरत चक्रियन्
...विभुवेनयिसुगुमखिलधरेयोल्भरतं ॥ ४ ॥ मरुवक्कमनोडिसलु
नेरे राज्यश्रीविलासमं मेरेयलुवीमरियाने नेरगु........
......मेच्चे पट्टदानेयुमादं ॥ ५ ॥ प्रातन सति मुन्न नेगल्दा
सीतेगरुन्धतिगे वा...........
..दोरेयेनलल्लदे
भूतलदोले जक्कणब्बेगुलिदौरेये ।। ६ ॥ ......याने दण्णायकनेरेयन...न जक्कियन्वेगे सुतरत्न..
......एरगु... . ...भरतबाहुबलिगलेनिप्पर ॥ ७ ॥ अन्तवरेन्तेनं ।। श्रीमत्पेर्गडे माचिराजगिरियोल्पुट्टत्ते सन्मार्गदि
न्दामाश्रीमरुदेवियेम्ब नलिनीवासक्के सन्दाजन
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