Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 605
________________ ४१६ आसपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख धारापूर्वकदि तग दूरं वग्गल बम्मगट्टवं बसदिगे सले । धारिणियरिय बिट्ट रविश शितारमेरुगल्नि विनेगं ॥ १३ ॥ परम जिनेश्वरपूजेगे पिरिदु सद्भक्तिविन्दे कोडियकटयौं । वरगुणरायगवुण्डं निरुतं कल्याणकीर्त्ति मुनिपङ्गितं ॥ १४ ॥ भूविनुतं कलि-बोप्पं देवङ्ग' चरुगिङ्ग नेमवेडेय मगं । भूविदितमागे कोट्टं तावरेगेरेयल्लि गद्दे खण्डुग वन्दं ।। १५ ।। कल्याणकीर्त्ति कीर्त्तिसु वल्ल्युदय मूरुल कम व्यापिसि के वल्यदोडगुडि सले मा गल्यमुमादत्तु चिन्ते चिन्त्यङ्गलवाल ॥ १६ ॥ ( स्वदत्तां परदत्तां वा आदि श्लोक ) [ चन्नरायपट्टन १६८८ ] [ इस लेख में चालुक्यत्रिभुवनमल्ल व विष्णुवद्धन पोरसलदेव के राज्य में नयकीर्त्ति के स्वर्गवास हो जाने पर चामले द्वारा तगडूर में. जिनालय निर्माण कराये जाने व श्रष्टविधार्चन, श्राहारदान तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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