Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 615
________________ ४२६ आसपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख " जगदाश्चर्यमिदत्यपूर्व्वमिदरन्दकब्जजं कूड बट्टिगेयन्तिट्टमिडल्कि देनेरेदने पेलेम्ब काङ्गाल्व जैनगृह' नाडे बेढङ्गुवेत्तदटरादित्यावनीनाथ की डिविलिन्तु तोदेने मत्ते वपिं पं || ४ || जगदाल्तानीव दा... नेगलल अदटरादित्य- चैत्यालयक्क्यै - दे गुणाम्भोराशि वीरामणि विजयभुजेोद्भासिदिव्याचे नक्कदुगडं सद्भक्तिविन्द तरिगलनिय मण्डल्लि नात्वत्तेरल्खण्डुगत्री जक्कित्तनत्युत्सव दिन अदटरादित्यनादित्यतेजं ||५|| इति सिद्धान्तदेवर्ग' नुनयदरिदाचन्द्रतारं सलुत्तेन्तेने धारापूर्वकं को, दनुदधिजलस्थूल कल्लोललीलावनचक्र पर्व्वित्तदनिदनुदनेनेन्दपै दानदोल्पावनुमं मिक्किर्पिनं माडिदिने सेये सद्धर्म केाङ्गावभूपं ||६|| स्वस्ति सकवर्ष १००१ नेय सिद्धार्थि संवत्सरं प्रवर्त्ति - सुत्तिरे स्वस्ति समधिगतपञ्चमहाशब्द महामण्डलेश्वर मोरेयूर्षुरवराधीश्वर जटाचोलकुलोदयाचलगभस्तिमालि सूर्यवंश - शिखामणि शरणागत वज्रपञ्जर श्रीमद्राजेन्द्र पृथ्वीका - ङ्गाल्त्र ं राज्य ं गेय्युत्तु ं श्रोसूलसङ्घद काणूर्गणद तगरिगल्गच्छद गण्डविमुक्त सिद्धान्त देवर्गे बसदिय माडिसि देवर्चनासोग के तरिगलनेय मावुकलं हेदगेदा... वित्तुवट्ट कोट्ट भूमि ख ४२ । ( अन्तिम श्लोक ) चतुर्भावालिखित्थक विद्याधर सन्धिविग्रहि श्रीमन्नकुला बरेदं मङ्गल महा श्री । [ अर्कलगुद 84 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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