Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
View full book text
________________
-
-
कर्मप्रकृति भ. ५४ भू. १३९. कुमारसेन सै० ५४, ४९३ भू. १३७, कलधौतनन्दि, देवेन्द्र के शिष्य, ४२, १३८, १४०. . ४३, ५०.
| कुमुदचन्द्र १२९ भू० १५९ कल्याणकीर्ति, माघनन्दिके शिष्य, ५५, | , भू० १४३. __ भू० १३३, १४३.
कुम्भ १०५ भू० १२८. कल्याणकीर्तिमुनि ४९७ भू० १५५. । कुलचन्द्र, कुलभूषणके शिष्य, ४० भू० कविचक्रवर्ति, अजितपुराणकर्ता भू० १३२. ११७.
कुलभूषण, पद्मनन्दिके शिष्य, ४०, कविताकान्त-शान्तिनाथ ५४.
४१, १०५ भु० १३०, १३२. कविरत्न १६६, २८८ भू० ११७.। कृत्तिकार्य १ भू० ६२, १२६. कंसाचार्य १०५ भू० १२६. कोण्डकुन्दान्वय ( कुन्दकुन्दान्वय ) काणूरगण ५०० भू. १४८.
४०, ४१, ४२, ४५, ५४, ५५, कालाविर्गुरु १३ भू० १५०.
५९, ९०, १०५, ११३, ११४, काष्ठासंघ ११९, ३८१, ३८२, ३८६, । १२२, १२४, १३०, १३२, १३७,
३९३, ३९६ भू. ११९, १४८. १३९,३१७,३१८,३१९,३२०, कित्तरसंघ १९४ भू० १४७.
३२४, ३२७, ३६०, ४२१, ४२६, कुक्कुटासन ४३.
४३०,४७१,४८१,४८६,४९१, ,, • मलाधारि (गण्डविमुक्त | ४९२, ४९४, ४९९, भू. ९०, म० ) ४५, ५९, ९०, १३७, १२९, १३०, १३७. ३६० भू. १५६.
| कोलत्तूरसंघ ३३, २०३, २०६ भू. कुक्कुटेश (बाहुबलि ) ८५, १३०, | १४७. १३८, ४८६.
कौमारदेव ४०. कुन्दकुन्दाचार्य (कोण्डकुन्द०) पद्म- क्षत्रिकार्य भू० १२६.
नन्दि ४०, ४२, ४३, ४७, ५०, क्षत्रिय १०५ भू० १२६. ७२, १०५, १०८, ४९२ भू. १२७-१२९, १३३, १३४, १३८ | गङ्गदेव १०५ भू. १२६. १४०, १४४.
गच्छ १०५. , जिनचन्द्र के शिष्य भू० १२८. | गण १०५. कुमारदेव-अविद्धकर्ण पद्मनन्दि ४०. गणधर ५०, १०५. कुमारनन्दि २२७ भू० १५२.. गणभृत् ( उ०) भू० १४१.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662