Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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जयभद्र १०५ भू० १२६, १२७.
जलजरुचि १०५.
जसकीर्ति यशःकीर्ति, गोपनन्दि के त्रैकाल्ययोगी ४७३ भू० १५६. त्रैकाल्ययोगी गोल्लाचार्य के शिष्य ४०,
शिष्य, ५५, १३३.
जिनचन्द्र ५५, १०५ भू० १३३,
१४२ः
जिनचन्द्र, कुन्दकुन्द के गुरु भू० १२८. जिनसेन ४७, ५०, १०५, ४२२ भू० २४, ७६, १३४, १६१. जिनेन्द्रबुद्धि - देवनन्दि ४०,
१०५,
१०८ भू० १४१.
जैनाभिषेक ( पूज्यपादकृत ) ४० भू०
१४१.
जैनेन्द्र ( व्याकरण पूज्यपादकृत ) ४०,
५५, भू० १४१.
ส
तगरिल गच्छ ५०० भू० १४८. तत्त्वार्थसूत्र ( उमास्वातिकृत ) १०५
S
भू० १४१.
तपोभूषण १०५.
तार्किक चक्रवर्ति उ० ४९६.
तीर्थद गुरु १२. त्रिदिवेशसंघ = देवसंघ १०५. त्रिभुवनदेव, देवकीर्ति के शिष्य, ३९,
त्रिलोकसार ( नेमिचन्द्रकृत ) भू० ३०. त्रिलोक प्रज्ञप्ति ( ग्रंथ ) भू० ३०.
४० भू० ९६, १५७. त्रिमुष्टिदेव, गोपनन्दि के शिष्य, ५५,
भू० १३३. त्रिरत्ननन्दि, माघनन्दि के शिष्य ५५,
भू० १३३.
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४७, ५० भू० १३२, १४२. त्रैविद्य ४७, ५०, ५४, ५६. त्रैविद्यदेव ११४.
द
दक्षिणाचार्य = भद्रभाहु भू० ५९, ६०. दक्षिणकुक्कुटेश्वर = गुम्मट १३८. दयापाल, मतिसागर के शिष्य, ५४ भू०
भू० १४०.
शिष्य ) १२८, १३० भू० १५६. तत्त्वार्थसूत्रटीका (शिवकोटिकृत ) १०५ दामनन्दि, चतुर्मुखदेव के शिष्य, ५५,
१३९.
दयापाल पं० ( महासूरि ) ५४ भू०
१३९.
दर्शनसार ( देवसेनकृत ) भू० १४८. दामनन्दि, रविचन्द्रके शिष्य ४२,
४३, १०५.
दामनन्दि-दावनन्दि, (नयकीर्तिके
भू० १३३, १४२. दिण्डिगूरशाखा ४९६ भू० १४७. दिवाकरनन्दि, चन्द्रकीर्तिके शिष्य ४३,
१३९, भू० १५४.
देवकीर्ति, गण्डविमुक्तके शिष्य, ३९, ४०, १०५, भू० ५२, ९६, ११६, १३२.
देवचन्द्र ४०, १०५, भू० ६०. देवणन्दि, जिनेन्द्रबुद्धि, पूज्यपाद, ४०,
१०५, ४५९ भू० ७२, १३२, १३४, १४१, १५३.
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