Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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देवश्री कन्ति (आर्यिका) ११३. धर्मभूषण, अमरकीर्तिके शिष्य १११ देवसंघ १०५, १०८ भू० १४५. भू० १३६. देवसेन ( दर्शनसार कर्ता) भू० १४८. धर्मभूषण शुभकीर्तिके शिष्य १११ देवेन्द्र (श्वे०) भू० १४३.
भू. १३६.। देवेन्द्र, गुणनन्दिके शिष्य ४२, ५०, धर्मसेन ७ भू० १२६, १२७, १५०.
५५, ४९२ भू० १३३, १५३. धवल (ग्रंथ) भू० ४४. देवेन्द्र, चतुर्मुखदेवके शिष्य ५५, भू० धृतिषेण १, १०५ भू० ६२, १२६. १३३.
ध्रुवसेन भू० १२६, १२७. देवेन्द्र विशालकीर्ति १११ भू० १३६. देशभूषण १०५.
नकुलार्य (लेखक) ५००. देसि, देसिग, देसियगण ४०-४३, नक्षत्र १०५ भू० १२६.
४५-५०, ५३, ५५, ५६, ५९, नन्दिगण, संघ, °आम्नाय, ४०, ४२, ६३, ६४, ७२, ९०, १०५, ४३, ४७, ५०, १०५, १०८, १०८, ११३, ११४, १२४, १३०, ४९३. भू० ६५, १२८-१३१, १३२, १३७, १३८, १३९, १४४, १३६, १४४, १४५-१४८. २२९, ३१७-३२०, ३२४, ३२७, नन्दिमित्र १०५ भू० ६०, १२५. ३६०,३६८,३६९,४२१, ४३०, नन्दिमुनीप २१७ भू० १५१. ४४६, ४७१, ४८६, ४८९, ४९१, नन्दिसेन २६ भू० १५१. ४९२, ४९४, ४९६, ४९९ भू० | नयकीर्ति, गुणचन्द्र के शिष्य ४२, ७०,
१३१, १३३, १३७, १४४. ७८,८१, ८५, ९०, ९६, १०४, द्रमिणगण ४९३ भू० १३६, १४८. १०५, १२२, १२४, १२,८१३०, द्रव्यसंग्रह (नेमिचन्द्रकृत) भू० ३२. । १३७, ३१७-३२०, ३२३-३२८ द्रुमषेणक १०५, भू० १२६, १२७. ४२६, ४९१, ४९४, ४९६,४९७,
भू० १३, ३५, ३७, ४५, ४६, धण्णे कुत्तारेवि गुरवि ( आर्यिका ) १०. ८९, ९६-९६, १११, १४६, धनकीर्ति २४३ भू० १५७.
१५५, १५६. धनपाल १०५ भू० १२८. नयकीर्तिदेव, हिरिय नयकीर्तिके शिष्य, धर्म १०५.
१२८, ४७५ भू० १५७. धर्मचन्द्र, चारुकीर्तिके शिष्य ११८ नयनन्दिविमुक्त ३०४ भू० ११८, १५२ . भू० १६१.
नमिलर, नविलूर, निमिटर व मयूरसंघ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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