Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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युष्पदन्त (महापुराणकर्ता ) भू० ७७. प्रभाचन्द्र मेघचन्द्र के शिष्य ४३,४४, पुष्पनन्दि १९७ भू० १५२. - ४७, ५०, ५१, ५२, ५३, ५६, पुष्पसेन ५४ भू० १३९.
६२, भू० ९२, ११६, १५४. पुष्पसेनाचार्य २१२ भू० १५२. प्रभाचन्द्र भट्टारक ९७ भू० १५९. पुष्पसेन सि० दे० ४९३ भू० १३७. प्रभाचन्द्र सि० दे० ५०० भू० ११०, पुस्तकगच्छ ४०-४३, ४५-५०,५३, १५३, १५६.
५६, ५९, ६३, ९०,१०५, १०८, प्रभावक चरित (श्वे. ग्रंथ) भू० १४३. ११३, ११४, १२४, १३०, १३२, प्रभावती (आर्यिका ) २७. १३७, १३८,१३९, १४४,३१७, प्रभासक १०५ भू० १२५. ३१८,३१९,३२०,३२४, ३२७, प्रोष्ठिल १, १०५ भू० ६२, १२६.. ३६८,३६९, ४२१,४२६, ४३०, ४४६, ४७१,४८६,४८९, ४९१, बलदेवगुरु, धर्मसेनके शिष्य, ७, भू० ४९४, ४९६, ४९९, भू० १३७, १५०. १४४, १४६.
| बलदेवमुनि, कनकसेनके शिष्य १५भू० पूज्यपाद देवनन्दि ४०, ४७, ५०, १४९.
५५, १०५, १०८ भू० १४१. बलदेवाचार्य १९५, भू० १५८. पूरान्वय ( श्रीपूरान्वय) २२० भू. | बलर (भट्टारक) १७४. १४७.
बलाकपिञ्छ, गृद्धपिञ्छके शिष्य, ४०, पूर्तिय गुरु ११५.
४२, ४३, ४७, ५०, १०५, पेरुमालु गुरु १०.
१०८, भू० १३१, १३४, १४०. पोल्लव्वे कान्तियर ( आर्यिका ) २४०. | बलात्कारगण १११, १२९ भू० १३५, प्रथमानुयोगशाखा ९८.
१३६, १४६. प्रभाचन्द्र चन्द्रगुप्त १ भू० ६२-६४. बालचन्द्र ( दखो अध्यात्मि°), नयकीप्रभाचन्द्र १०५.
र्तिके शिष्य, ४२, ५०, ६९, ८५, प्रभाचन्द्र चतुर्मुख के शिष्य, ५५ भू. १०४, १०५, १२२, १२४, १२८, ११२, १३३, १४२.
१३०, १८७, ३२३, ३२५, प्रभाचन्द्र नयकीर्ति के शिष्य ४२,१२२, ३२८, ४२६, ४९४, ४९६, भू. १२४, १२८, १३०.
३७, ९७-९९, १५६. प्रभाचन्द्र पद्मनन्दि के शिष्य ४० भू. बालचन्द्र, नेमिचन्द्र के शिष्य, १२९, १३२.
४७९, भू० ५२, १६०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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